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अनमोल हिंदी

डॉ. दीपा कैमवाल
दिल्ली
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क्यूं सिसके
हिंदी कोने में?
उससे बढ़कर जब
न भाषा कोई।

है गर्व हमें
हिंदी पर है
हर भारतवासी की
पहचान यही।

भावों की
सुंदर अभिव्यक्ति
जिसका है नहीं
सानी कोई।

संस्कार समाहित
हैं जिसमें
अनमोल, अमिट
आभा इसकी।

मुखरित होती
मानवता जिसमें
मनुष्यता की
पहचान यही।

जो लोग हीन
खुद को पाते
उनसे बढ़कर
नहीं अनभिज्ञ कोई।

माँ कहीं
भुलाई जाती है
क्या उसको
छोड़ा जाता है।

तुम भूल गए
वो ना भूली
बच्चों से क्या
उसका नाता है।

वो दुलार
कहाँ से लाओगे
आँचल में किसके
समाओगे।

मत मूर्ख बनो
कुछ तो समझो
उसके महत्व को
अब तो समझो।

वो तो है
अनमोल कहीं
विचरण करते जहां
भाव सभी।

भाषाएं कितनी
कितनी बोली
माँ से बढ़कर
कब कोई हुई।

इसका तो स्थान
सबसे ऊपर
ईश्वर के बाद
अनमोल यही।

आगे बढ़ने की
चाहत में
पीछे न रह जाओ
तुम आज कहीं।

माँ से बच्चे
कब दूर हुए
जो दूर हुए
कब पार लगे।

अपनी अस्मिता को
पहचानो
माँ से बढ़कर
न और कोई।।
क्यूं सिसके हिंदी
कोने में????

परिचय :-  डॉ. दीपा कैमवाल
निवासी : दिल्ली
सम्प्रति : सहायक प्राध्यापक दिल्ली विश्वविद्यालय
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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