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दहेज प्रथा: आदर्श विवाह द्वारा उन्मूलन

रचयिता : डाॅ. संध्या जैन

दहेज हमारे समाज को लगी हुई कैंसर से भी अधिक भयानक बीमारी है। यदि शीघ्र ही इस बीमारी से ग्रसित समाज को राहत नहीं दिलाई गई तो वह पतन के गड्ढे में जा गिरेगा।
ऐसी कुत्सित प्रथा के पक्ष में लिखना तो ठीक वैसा ही है जैसा कि ‘अन्धे को लाठी दिखाना।’ समाज में व्याप्त इस दहेज-प्रथा ने अनके परिवारों को उजाड़ दिया है। विशेषतः निम्न और मध्यम वर्ग के परिवार इसके शिकार हुए हैं। इस दहेज की कुत्सित वृत्ति के कारण अनेक माता-पिता विवश होकर अपनी लड़की को कुरूप या वृद्ध वर के हाथों बेच देते हैं। यही नहीं वरन् लड़कियों की जिंदगी को भ्रष्ट करने में भी दहेज-प्रथा का बहुत बड़ा हाथ है। कितनी ही लड़कियाँ जीवन से हताश हो आत्म-हत्या कर लेती हैं तथा गलत कामों की ओर उन्मुख हो जाती हैं। तलाक, बाल-विवाह, अनमेल-विवाह, आर्थिक ढाँचा चरमराने पर माता-पिता द्वारा आत्म-हत्या, बहू को जिंदा जलाकर मार डालना, सास के ताने-बाने, ननद की घुड़कियाँ इत्यादि सब दहेज के ही दुष्परिणाम हैं।
वास्तव में- इस दहेज-प्रथा ने हमारे परिवार को ही नहीं वरन् समाज को भी अजगर की भाँति निगल लिया है।
दहेज-प्रथा के उन्मूलन के लिए कई प्रयास किए गए हैं और किए जा रहे हैं, किन्तु अभी तक वे सब पूर्णतः सफल नहीं हो पाए हैं। यहाँ तक कि सरकार ने भी सन् 1962 में ‘दहेज-विरोधक’ अधिनियम बनाया तथा सन् 1975 में संजय गांधी के पाँच सूत्रीय कार्यक्रम में एक सूत्र ‘दहेज-प्रथा मिटाओ’ भी था, किंतु खेद का विषय है कि इन सब प्रयत्नों के बावजूद भी इस दूषित-प्रथा का खात्मा नहीं हो सका। इस घृणित प्रथा को दूर करने का एकमात्र और सरलतम उपाय ‘प्रेम-विवाह’ ही है।
शास्त्रकारों के अनुसार – गान्धर्व अथवा प्रेम-विवाह उसे कहते हैं जो कन्या और वर के परस्पर प्रेम के फलस्वरूप होता है। इनमें वैवाहिक संस्कार कार्य संभोग के बाद में पूर्ण किए जा सकते हैं।
वात्स्यायन ने अपने ग्रंथ ‘कामसूत्र’ में ‘प्रेम-विवाह’ को ‘आदर्श विवाह’ की संज्ञा दी है। बोधायन ने कहा है कि यह विवाह दोनों की इच्छाओं पर आश्रित होने के कारण अति उत्तम है। अतः आदर्श विवाह द्वारा दहेज-प्रथा को समाप्त किया जा सकता है क्योंकि यह विवाह बड़े ही साधारण ढंग से, शांत परिवेश में, पवित्र विधि से संपन्न किया जाता है। ऐसा विवाह ऊपरी तड़क-भड़क से कोसों दूर, कनफोड़वा रिकार्डों, शामियानों आदि फालतू खर्चों को बचाता है किंतु इसका यह अर्थ कदाचित नहीं कि वह प्रेम मात्र क्षणिक व औपचारिक हो; क्योंकि विवाह कोई गुड्डे-गुडि़यों का खेल तो है नहीं कि जब चाहे कर लिया जब चाहे तोड़ दिया। यह विवाह अपने आप में एक आदर्श और वास्तविक प्रेम से परिपूर्ण होना चाहिए। प्राचीन कवि कबीर की प्रासंगिकता इस संदर्भ में दृष्टव्यहै, उन्होंने ठीक ही कहा है –

‘‘छिनहिं चढ़ै छिनहिं ऊतरै सो तो प्रेम न होय।
अघट प्रेम पिंजर बसै प्रेम कहावै सोय।’’
‘‘प्रेम न बाड़ी ऊपजै प्रेम न हाट बिकाय।
राजा-परजा जेहि रूचै सीस देइ लै जाए।’’

वास्तव में -आज के प्रगतिशील और वैज्ञानिक युग में ‘प्रेम-विवाह’ या ‘आदर्श विवाह’ का नाम सुनते ही बुजुर्ग लोग अपना मुँह सिकोड़ लेते हैं क्योंकि असलियत यह है कि उन्होंने समाज में व्याप्त बुराइयों की ओर दृष्टि-पात किया है। सच तो यह है कि आज कई मूढ़ युवक-युवतियों ने इस ‘प्रेम-विवाह’ को बदनाम कर दिया है, उसकी पवित्रता क्षीण कर दी है। आज कई छैल-छबीले सड़कों, पार्कों, थियेटरों, महाविद्यालयों तथा अन्य स्थलों पर प्रेम के नाम से दुष्कार्यों को कर एक ओर तो समाज को कलंकित कर रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर अपने माता-पिता की आँखों में धूल झोंक रहे हैं तथा कई युवक तो स्वांग रचकर भोली-भाली लड़कियों को ठगते हैं, ब्लैकमेल करते हैं। जिस माता ने अनेक यातनाएँ सहते हुए उसे अपनी कोख से जन्मा है तथा जिस पिता ने अनेक समस्याओं से जूझते हुए उसका पालन-पोषण किया है – उन्हीं माता-पिता से मुख मोड़ना कैसी नैतिकता है? मेरे कहने का तात्पर्य यही है कि आज की युवा-पीढ़ी ‘प्रेम-विवाह’ ‘आदर्श-विवाह’ अवश्य करे किंतु उस विवाह में किसी प्रकार का दुराव-छिपाव, लाग-लपेट या छलावा न हो तथा वह माता-पिता की सहमति से और विवेकपूर्ण होना चाहिए।
वास्तव में -दहेज जैसी कुत्सित-प्रथा का खात्मा ‘प्रेम-विवाह’ (आदर्श-विवाह) द्वारा ही संभव है; क्योंकि कानून तो बनते हैं और बनते ही रहेंगे परंतु यदि नौजवान युवक-युवतियाँ आज ही यह निर्णय ले लें कि दहेज देने वाले व्यक्ति से कदाचित् विवाह नहीं करेंगे तो दुनिया की कोई ताकत इस निर्णय को परिवर्तित नहीं कर सकती। बस, आवश्यकता है दृढ़ संकल्प और सात्विक विचारों की। अतः आज की युवा पीढ़ी ‘आदर्श-विवाह’ यानी ‘प्रेम-विवाह’ को आज ही अपना ले तो दहेज जैसी दूषित-प्रथा समाप्त हो सकती है, क्योंकि सच्चे और शुद्ध प्रेम में दहेज जैसी तुच्छ वस्तु का कोई मूल्य नहीं। वह तो मात्र एक आकर्षक और नश्वर वस्तु है जो व्यक्तियों को लालच दिलाकर खाई के कुएँ में गिराना चाहती है किन्तु समझदार व दूरदर्शी व्यक्ति इसमें गिरने से बच जाते हैं।

 

लेखिका परिचय :- 

नाम : डाॅ. श्रीमती संध्या जैन
पिता का नाम : डाॅ. नेमीचन्द जैन
जन्म दिनांक : 30 अक्टूबर, 1961
शिक्षा : एम.ए., हिन्दी, पी-एच.डी
सम्प्रति : 1988 से इन्दौर के अनुदान प्राप्त श्री क्लाॅथ मार्केट कन्या वाणिज्य महाविद्यालय में सहायक प्राध्यापक,हिन्दी
पुरस्कार एवं सम्मान: 1981-82 में राष्ट्रीय एवं प्रावीण्य छात्रवृत्ति। 1981 में, एम.ए. पूर्वार्द्ध में विश्वविद्यालय द्वारा घोषित परीक्षाफल के अनुसार सर्वाधिक अंक प्राप्त करने पर 1982 में देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर की हिन्दी अध्ययन परिषद् (बोर्ड आॅफ स्टडीज) में चयनित किया गया।
ऽ 1983 से 1987 तक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा प्रदत्त कनिष्ठ एवं वरिष्ठ शोध छात्रवृत्ति (फैलोशिप) से सम्मानित।
ऽ शोध कार्य के दौरान रिसर्च फैलो के रूप में शासकीय कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय, मोती तबेला इन्दौर में अध्यापन कार्य किया।
ऽ अखिल भारतीय स्तर पर आयोजित अनेक निबंध, लेख, कहानी आदि प्रतियोगिताओं में पुरस्कार एवं सम्मान।
ऽ राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में शोध पत्रांे की प्रस्तुति हेतु सम्मानित।
ऽ उत्कृष्ट सेवाओं हेतु महाविद्यालय द्वारा सम्मानित।
प्रकाशन:
ऽ अनेक लेख, कहानी, कविताएँ, शोध पत्र एवं पुस्तक समीक्षाओं का प्रकाशन।
ऽ पुस्तक प्रकाशन- 1. ‘प्रवाह‘ -जीवनोपयोगी आलेख- प्रथम संस्करण ; मार्च, 2016,प्ैठछ
2. ’संवाद’ – काव्य संग्रह – कविताओं का गुलदस्ता, जून 2017, प्ैठछ . 81.85760.57.10
ऽ महाविद्यालय की वार्षिक पत्रिकाओं का संपादन।
ऽ महाविद्यालय द्वारा प्रतिमाह – 14 फरवरी, 2009 से 14 अगस्त, 2013 तक प्रकाशित भारतीय भाषाओं की शोध गतिविधियों के मुखपत्र ‘प्रवाह‘ का संपादन एवं संयोजन।
ऽ अभिनन्दन पत्र – दिगम्बर जैन सोशल ग्रुप द्वारा श्रेष्ठ शिक्षक हेतु।
ऽ सम्मान-साहित्य में लेखन हेतु-जे.एम.डी. पब्लिकेशन,दिल्ली,श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान,नारी गौरव सम्मान। भाषा सहोदरी सम्मान।
प्रसारण:
ऽ आकाशवाणी, इन्दौर से कार्यक्रमों का प्रसारण।
ऽ वर्ष 2013 में दूरदर्शन इन्दौर से वसंत पंचमी कार्यक्रम एवं परिचर्चा का प्रसारण।
समाज सेवा:
ऽ स्काउट्स के रूप में निरंतर तीन वर्षां तक।
ऽ महाविद्यालय में राष्ट्रीय सेवा योजना के तहत्  कार्यक्रम अधिकारी के रूप मंे।
ऽ मध्यप्रदेश शासन उच्च शिक्षा विभाग, एकीकृत परती भूमि विकास परियोजना, महू (बड़गोंदा) में 1993 के विशेष शिविर में मध्यप्रदेश शासन उच्च शिक्षा विभाग द्वारा सम्मानित।
ऽ विगत वर्षों में समाज सेवा प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित व्यक्तित्व विकास शिविर में (तंग बस्ती के बालक -बालिकाओं हेतु ) मार्गदर्शन एवं प्रशिक्षण।
ऽ वर्ष 2013-14 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा अनुमोदित लघु शोध परियोजना तैयार करते समय इन्दौर, धार, राजगढ़ मंदसौर आदि की आदिवासी महिलाओं की समस्याओं से अवगत होकर उनका निराकरण एवं उनके विकास हेतु प्रयास।

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