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तेरी बांसुरी

पूजा त्रिवेदी रावल ‘स्मित’
अहमदाबाद (गुजरात)

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कान्हा तेरी बांसुरी की धुन सुनी पड़ रही है,
आकर देख, राधा और द्रौपदी दोनों पीस रही है।

कोई नहीं अब सुलझाने वाला यहां कोई,
उलझनें सब और बढ़ रही है।

भगवद्गीता के भी मतलब नीकलते इन्सानी मर्ज़ी से,
हम सब की अर्जियां तेरे पास कबसे पड़ी है।

जेहाद चल रही है पर कारण पता नहीं है,
यहां सबकी खुद की अक्कल बिक रही है।

ना उतरने दिया था सम्मान द्रौपदी का तुमने भरे दरबार में
पर, हर मोड़ हर चौराहे पर द्रौपदी बिक रही है।

भूल चुकी है वह ताकत अपनी और शस्त्र की,
तुझे बुलाते हुए चूपचाप बैठी है।

भरोसा नहीं इस पूरी दुनिया में किसी पर फिर भी,
सिर्फ़ तुझपर भरोसा टिकाये बैठी है।

एक बार आकर याद दिला दे मुरलीधर,
‘स्मित’ अपनी मुठ्ठी में बांधकर बैठी है।

खोलना मुठ्ठी उसकी ताकत की सिखा जा बंसीधर,
अपने सीने में हिम्मत बेशुमार ले बैठी है।

परिचय :- पूजा त्रिवेदी रावल ‘स्मित’
निवासी : अहमदाबाद (गुजरात)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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