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घरौंदा सपनों का

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय ‘राज’
बागबाहरा (छत्तीसगढ़)

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सोनू! अपनी चाहत को
शब्दों में कैसे बयां करूँ
मेरी हर यादें
तुमसे जुदा नहीं है
मेरी हर बात
तुमसे जुदा नहीं है
तेरी यादों से तेरी बातों से
कभी जुदा नहीं हूं
मेरे उन एहसासों को
मेरे उन जज्बातों को
शब्दों पिरो सकूँ ये
क्षमता नही मुझ में
अपने जज्बातों को
काबू कर सकूँ
अपने मोहब्बत को
जुबाँ से बयाँ कर सकूँ
अपने एहसासों को
कलम से लिख सकूँ
मेरा ऐसा कोई
मकसद नहीं है
बस जिंदगी को
समझना चाहता हूं
जो जिंदगी मुझे
समझाना चाहती है
कभी शिकवा नही
कभी गीला नहीं
ऐ जिंदगी तुम माध्यम हो
मेरी मोहब्बत की
ऐसा क्या तुम
जतला गई मुझे हो
गमों की बस्ती में भी
खुशियां तलाश लेता हूँ
जिंदगी के किसी
मोड़ पर कभी मिलोगी
ऐ मेरी जिंदगी तो
पूछुंगा जरूर तुमसे
अब और क्या सिखलाना
चाहती हो तुम मुझे
तेरे होने का एहसास क्यों
दिलाती हो मुझे हरपल
एहसास ही जीने का
जरिया नहीं है
तुझसे मिलना
नासमझी मकसद है
ना उम्मीद कभी ना हुआ
जीवन में कभी
बस चाहत का ये
सिलसिला चलता रहा है
तेरी यादों के फूलों से
दिल का सेज सजा रखा है
घर के आंगन मोहब्बत के
सितारों से भरी हुई है
तेरे आने की आहट से
हर पल दिल धड़कता रहता है
भेजा है संदेशा
बहती हवाओं को दूत बनाकर
ऐ जिंदगी कभी आओ
मेरे दिल के आंगन में
मेरी जिंदगी का हिस्सा
बनकर भी देख लो
खुशियों की बारिश में हम
अपने सारे गम भूल जाएंगे
ऐ जिंदगी! ऐसा होगा
घरौंदा हमारे सपनों का

परिचय :-  राजेन्द्र कुमार पाण्डेय ‘राज’
निवासी : बागबाहरा (छत्तीसगढ़)
सम्प्रति : प्राचार्य सरस्वती शिशु मंदिर उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, बागबाहरा
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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