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लालकिला

डाॅ. रेश्मा पाटील
निपाणी, बेलगम (कर्नाटक)

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इस प्राची ने देखा वो मंजर
जो कभी किसी ने सोचा न था
शर्मसार खडा तिरंगा था
सब का अपना अपना झंडा था

सत्ता अपने अधिकारों पे अडी रही
जनता कर्तव्य बिसार गयी
देखा जो बवाले लालकिला
वीरों की कुर्बानी रोयी

रक्षक मेरे कुछ समझ ना पाये
किस पे बंदूक चलानी है
सीना ताने अपने ही लाल खडे आगे
तो बस शौर्यता का गुमान गया

इतिहासो के पन्नों को क्यू
आज ये हिंद बिसार गया
मुगलों की आन बान कभी था
भारत की जान और शान हुवा

वो लालकिला बस आज आपने ही
पुतोंसे पशेमान हुवा
आज उसे भूला वो इतिहास
का पन्ना याद आया

अपने ही पीता के अंगों पे
विषमलता बेटा देखा
भाई ने भाई का कत्ल किया
मूक साक्षी खडा था लालकिला

कितने बादशाह बदलते देखे
कितने तख्ते पलटते देखे
मुगलों के गृहकलह से आहत
अंग्रेजो का दास हुवा

फिर भी माँ भारती के बेटों ने
कभी गर्दन उसकी झुकने ना दी
स्वतंत्रता संग्राम किया
भारत माँ को आजाद किया

जब-जब कोई दुश्मन आया
तब-तब हुंकारा लालकिला
पर हाय उसकी किस्मत देखो
अपनो से हारा लालकिला

धरती के बेटों का भेस बना
दुश्मन ने उसको आज छला
अपनो का भेस बदलते ना
तो यूं वार करना मुश्किल था

प्राची पे चढ तिरंगे का
अपमान करना मुश्किल था
बस एक बार साबित हो जाये
तुमने भेस किसान का बदला था
आंदोलन की आड मे
आतंको का हमला था

बन किसान जब आये तो
जवानों का संयम देखा
मत सोचो ये कमजोरी है
बस यही हमारी ताकत है

जब बुर्का उतरेगा तुम्हारा
जो अपनो का तुमने पहेना है
कसम है हमको इस मिट्टी की
जो ना रक्त से हमने तिलक किया

परिचय :-  डाॅ. रेश्मा पाटील
निवासी : निपाणी, जिला- बेलगम (कर्नाटक)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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