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प्यारी बहना

योगेश पंथी
भोपाल (भोजपाल) मध्यप्रदेश
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संग रहती थी जब बहना
सब कितना मनभावन था।

प्यारी बहना संग में थी तो
हर दिन जैसे सावन था॥

बचपन से दो दशको तक
जो साथ रही संग में खेली।

मेरी प्यारी सी बहना की
बचपन की यादों की थैली॥

लिए साथ में सोता हूँ
करके सारी यादें भेली।

चहल पहल सी थी घर में
जब बेहना घर रहती थी॥

माँ की प्यारी परी, पिता की
सोन चिरैया रहती थी।

सब बातों में साथ थी मेरे
वो तो मेरी हमजोली थी॥

बात बात पर गुस्सा होती
बहना कितनी भोली थी।

सजा धजा घर अँगना था
वो तो थी घर का गहना॥

बचपन में ये कहाँ पता था
कुछ हि दिन हैं संग रहना।

हमको ये मालूम नही था
शीतल पवन का झोंका हैं॥

जीवन भर वो साथ रहेगी
ये तो बस इक धोका हैं।

इसी बात को समझा कर
होंटों को खोला करते थे॥

वह अमानत गैर की हैं
बाबूजी बोला करते थे।

विदा हुई तो छूप छूप कर
बाबूजी रोया करते थे॥

कई दिनो तक मेरे मन में
भी तो कोई सवाल सा था।

बाबू जी तो ठीक हि थे पर
माँ का बुरा हाल सा था॥

जब भी ग़म बड़ जाता हैं
तेरे संग रहने लगती हैं।

सावन लगते हि यादों में
आंखे बहने लगती हैं॥

राखी की नाजुक लड़ियाँ
मुझसे कहने लगती हैं।

मेरे आँगन में कोयल कब
कूह कूह गीत सुनाएगी॥

सावन आया हैं बहना पर
तू कब मिलने आएगी।

अपने हाथो से बहना
तेरे चरणो को छूना हैं॥

जल्दी मिलने आजा बहना
बाबूल का आंगन सुना है।

जल्दी मिलने आजा बहना
बाबूल का आंगन सुना हैं॥

परिचय :- योगेश पंथी
निवासी : टीलाजमालपुरा भोपाल (भोजपाल) मध्यप्रदेश
राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से लेखन यात्रा प्रारंभ ….
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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