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क्या वाकई दूर बैठी हैं बहनें?

कार्तिक शर्मा
मुरडावा, पाली (राजस्थान)
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आजकल आवागमन के इतने सुगम साधन होने के बावजूद भी बहने अपने मायके नहीं आ पाती वो इसलिए कि अब उनका खुद का घर परिवार बच्चे संभालने होते हैं आज के परिवेश में स्थितियां भी बदल गई प्यार और अपनत्व ने भी उस डोर से किनारा कर लिया ननद ने भाभी को फोन करके पूछा कि भाभी मैंने जो राखी भेजी थी मिल गई क्या आप लोगों को भाभी ने कहा नहीं दीदी अभी तक तो नहीं मिली
ननद बोली ठीक है भाभी कल तक देख लो अगर नहीं मिली तो मैं खुद आ जाऊंगी राखी लेकर अगले दिन भाभी ने खुद फोन किया और कहा कि हां दीदी आपकी राखी मिल गई है बहुत अच्छी है धन्यवाद दीदी …
ननद ने फोन रखा और आंखों में आसूं लेकर सोचने लगी कि भाभी मैंने तो अभी राखी भेजी ही नहीं और आपको मिल भी गई रिश्तों को सिमटने और फिर टूटने से बचाएं क्योंकि यह रिश्ते हमारे जीवन के फूल हैं जिन्हे ईश्वर ने हमारे लिए खिलाया है बुआ बहन बेटी पर किए गए खर्च हमेशा फायदा ही होता है यह हमसे चंद पैसे लेने नहीं बल्कि हमें बेसकीमती दुआएं देने आती है मां पिता भाई भाभी व उनके बच्चों को प्यार भरी नजर से देखने आती है मायका बहन बेटी के लिए स्वर्ग जैसा होता है वह मरते दम तक इसको भूला नहीं पाती बापू का घर और उसका आंगन जिस आंगन में कभी उसकी बचपन की यादें समाई हुई हो वो कैसे भूल सकती हैं
कृपया
एक बेटी को
एक बहन को
एक बुआ को
एक ननद को प्रेमपूर्वक आमंत्रित कीजिए आपके आमंत्रण से वो चिड़ियों की तरह चहक उठेगी और दौड़ी चली आएगी आपके वजूद को महकाने आपके होठों पर मुस्कान बिखेरने आपको आपके बचपन में ले जाने के लिए बापू के घर बुलाने के लिए आपके हाथो की कलाइयों पर रक्षा सूत्र बांधने के लिए उस दूरी को मिटाने के लिए आमंत्रित तो कीजिए..।।

परिचय : कार्तिक शर्मा
पिता : शुक्राचार्य शर्मा
शिक्षा : बी.एड, एम.ए.
निवासी : मुरडावा पाली राजस्थान

घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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