विजय गुप्ता
दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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खिलाड़ी की उमर कम है, मगर इरादों में दम है
तारीफ करो जितनी भी, लगती फिर भी कम है
हॉकी बादशाही इतिहास, भारत बेमिसाल रहा
दुनिया को हिंदुस्तानी, जज़्बों का खयाल रहा
मेजर ध्यानचंद रुतबा, जग को एक सवाल रहा
अस्सी दशक के बाद से, पदकों का अकाल रहा
प्रशिक्षण साधन मेहनत कठोर,दूर हटाता तम है
दृढ़ संकल्प बल पर, लक्ष्य प्राप्ति से बम बम है
तारीफ करो जितनी भी, लगती फिर भी कम है।
जयपाल से वासुदेवन, स्वर्ण पदक के आसमान
बोखारी मेजर केडी किशन, चरण बलवीर शान
तालिका में बारहवे क्रम से, बिगड़ी बहुत पहचान
उचित पर्याप्त समय की, मेहनत से ही समाधान
टोक्यो ओलिम्पिक में, कांस्य पदक से ढम ढम है
लंबे अंतराल में मनप्रीत, खुशियों से आंखें नम है
तारीफ करो जितनी भी, लगती फिर भी कम है।
समय परीक्षा लेता खूब, पल पल का है घमासान
गुजरते लम्हों की धड़कन, जज़्बों से ही समाधान
उचित समय की प्रार्थना, बन जाता रब रहमान
देश-प्रेम की भक्ति शक्ति, कभी नहीं है एहसान
पुरुष महिला हॉकी ने, अब मिटाया पूरा भ्रम है
ध्यानचंद खेल रत्न नाम, सोनेचांदी सी चम चम है
तारीफ करो जितनी भी, लगती फिर भी कम है।
खिलाड़ी की उमर कम है, मगर इरादों में दम है
तारीफ करो जितनी भी, लगती फिर भी कम है।
परिचय :- विजय कुमार गुप्ता
जन्म : १२ मई १९५६
निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़
उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग
साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा प्रशंसा पत्र
काव्य संग्रह प्रकाशन : १ करवट लेता समय २०१६ में, २ वक़्त दरकता है २०१८
राष्ट्रीय प्रशिक्षक : (व्यक्तित्व विकास) अंतराष्ट्रीय जेसीस १९९६ से
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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