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सुंदर प्रतिफल

निरुपमा मेहरोत्रा
जानकीपुरम (लखनऊ)
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महा विभीषिका का संत्रास,
कल इतिहास में अंकित होगा;
जब मनुष्य हुआ था कैद घरों में,
मुक्त विचरते थे पशु पक्षी।

मानव असहाय मूक दर्शक बन,
रहा देखता अजब नजारे;
वृक्ष फलों से लदे हुए थे,
कोई न उनकी ओर निहारे।

धरा दोहन से मुक्त होकर,
पुष्पों की चुनरी ओढ़ सजी थी;
नदियां साफ सुथरी सी होकर,
मदमाती मस्त कल कल बहती थीं।

अदृश्य जीवाणु ने कुपित होकर,
जग में हाहाकार मचाया था;
अस्त्र शस्त्र बेकार हुए,
जीवन गति पर विश्राम लगा था।

दुनियां को छोटा कहने वाले,
लक्ष्मण रेखा में सिमट गए थे;
चांद तारों को छूने वाले,
जीने को मोहताज हुए थे।

मानव ने तब हिम्मत बांधी,
लेकर धैर्य संयम का संबल;
और अंततः विजयी हुआ वह,
पाया संकल्पों का सुंदर प्रतिफल।

परिचय :- निरुपमा मेहरोत्रा
जन्म तिथि : २६ अगस्त १९५३ (कानपुर)
निवासी : जानकीपुरम लखनऊ
शिक्षा : बी.एस.सी. (इलाहाबाद विश्वविद्यालय)
साहित्यिक यात्रा : कहानी संग्रह ‘उजास की आहट’ सन् २०१८ में प्रकाशित। अभिव्यक्ति साहित्यिक संस्था द्वारा प्रति वर्ष प्रकाशित कहानी संकलनों में कहानियां प्रकाशित। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कहानी, कविता, यात्रा वृत्तांत तथा लेख प्रकाशित।
सम्प्रति : भारतीय स्टेट बैंक से सन् २०१३ में सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वतंत्र लेखन एवं सामाजिक संस्था ‘श्री महिला शक्ति मंडल फाउंडेशन लखनऊ’ के माध्यम से सामाजिक सरोकारों से जुड़ाव।
सम्मान : लोपामुद्रा सम्मान- २०१८
घोषणा पत्र : यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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