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हर कोई रंज में डूबा जैसा

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया
भोपाल (मध्यप्रदेश)

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मुल्क का मंजर ऐसा।
हर कोई रंज में डूबा जैसा।
हर कोई अरज करे ऐसा,
मरज दूर हो जैसा।
मुल्क पर कोरोना खंजर ऐसा।
हर कोई लहू में डूबा जैसा।
मुल्क पर कोरोना अंगार ऐसा।
हर कोई आग में जल रहा जैसा।
मुल्क पर कोरोना
की धुंध छाई ऐसी।
हर कोई आग में जल रहा जैसा।
मुल्क पर कोरोना
की धुंध छायी ऐसी।
हर कोई तड़प रहा
चंद सांसों के लिए जैसा।
मुल्क पर कोरोना
विपदा बस्ती पर ऐसी।
हर कोई अपनी डूबती
कश्ती बचा रहा जैसा।
मुल्क पर कोरोना की गंध ऐसी।
हर कोई अपने घर बंदी बना जैसा।
मुल्क का मंजर ऐसा
कई मइयते देखी ऐसी।
हर कोई कोरोना तपन
में जलने लगा जैसा।
मुझे मेरे मुल्क पर गुरुर ऐसा।
मेरा मुल्क मेरा चमन जैसा।
मेरे मुल्क पर कोरोना।
इनायत कर ऐसे।
मेरा मुल्क गुलशन बनेगा जैसे।
मेरे मुल्क में कोरोना
का इलाज होगा ऐसे।
एक दिन मेरा मुल्क
गुलफाम बनेगा अवश्य।
मेरे मुल्क का मंजर फिर से खुशहाल।
होगा अवश्य।

परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया
निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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