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मेरी यह अभिलाषा है…

आचार्य राहुल शर्मा
फिरोजाबाद (उत्तर प्रदेश)

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               लावणी छंद में कविता

मेरे मन की यह अभिलाषा, प्रेम बढे जग खिल जाये ।
राग द्वेष से हटकर प्राणी, प्रेम गले से मिल जाये ।।
प्रेम से बढकर कौन जहां मे, मुझको प्यारे बतलाओ ।
नम्र निवेदन यही करूँगा, पाठ प्रेम का सिखलाओ ।। १

बिना प्रेम के जग की रचना, मन कैसे हो पायेगी ।
प्रेम रूप ही ईश्वर का है, देख अक्ल आ जायेगी ।।
सच्चा ज्ञान प्रेम है मानो, काली रातें कहतीं हैं ।
ये कटतीं हैं प्रेम मग्न हो, अंधकार को सहतीं हैं ।। २

तुलसी सूर कबीर कहें सब, प्रेम ड़गर चलते जाना ।
ईश्वर तुम से दूर नहीं हैं, जाओ तो मिलते जाना ।।
मीरा गाये प्रेम मग्न हो, मैं तो हरि की हो गई रे ।
हरि की चादर ऐसी ओढ़ी, प्रेम गली में सो गई रे ।। ३

नारद वींणा वादन करते, भज नारायण कहते हैं ।
जगत सार बस हैं नारायण, प्रेम गली में रहते हैं ।।
प्रेम जगत आधार समझ ले, ओ कलुषित जग के प्राणीं ।
अभिलाषा मेरे मन की यह, प्रेम रूप धर ले प्राणीं ।। ४

परिचय :-  आचार्य राहुल शर्मा
निवासी : फिरोजाबाद (उत्तर प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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