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साहित्य और समाज

सुनील कुमार
बहराइच (उत्तर-प्रदेश)
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साहित्य और समाज का आपस में गहरा नाता है
साहित्य समाज का दर्पण कहलाता है।
मनोभावों को शब्द रूप दे साहित्य रचा जाता है
सत्य झलक समाज की साहित्य ही दिखलाता है
साहित्य समाज का दर्पण कहलाता है।
नई दिशा समाज को साहित्य ही दिखलाता है
सजक कर समाज को अपना कर्तव्य निभाता है
साहित्य समाज का दर्पण कहलाता है।
निराशा में भी आशा की किरण दिखलाता है
सोच-समझकर कर चलना सिखलाता है
साहित्य समाज का दर्पण कहलाता है।
कालजयी सृजन समाज ही करवाता है
साहित्य संरक्षण भी समाज करवाता है
समाज साहित्य का आधार कहलाता है।
कालजयी सृजन कर
साहित्यकार सम्मान पाता है
मर कर भी अमर हो जाता है
साहित्य समाज का दर्पण कहलाता है।

परिचय :- सुनील कुमार
निवासी : ग्राम फुटहा कुआं, बहराइच,उत्तर-प्रदेश
घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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