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मंज़िलें… ये डगर और है आदमी

नवीन माथुर पंचोली
अमझेरा धार म.प्र.
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मंज़िलें, ये डगर और है आदमी।
मुश्किलें, ये सफ़र और है आदमी।

रात के साथ है नींद की रंजिशें,
रतजगे, ये पहर और है आदमी।

वक़्त के साथ मिलकर गुजरते रहे,
सिलसिले ,ये बसर और है आदमी।

होशआ पायेगा किस तरह इस जगह,
मैक़दे, ये असर और है आदमी।

है सितारों भरा रात का आसमाँ,
फासलें, ये नज़र और है आदमी।

परिचय :- नवीन माथुर पंचोली
निवास – अमझेरा धार म.प्र.
सम्प्रति – शिक्षक
प्रकाशन – देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित।
सम्मान – साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।


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