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विकृति

मालती खलतकर
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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वह सड़क किनारे मंदिर के पास नदियों के घाटों पर कहीं भी दिखाई देते हैं। अवलंबन विहीन कहीं अंधेरे में कहीं कड़ी धूप में ना कहीं और ना कहीं ठौर ठिकाना शरीर पर टंगे चिथड़े कपड़ों को संभाल ते सिर खुजाते कहीं हाथ पकड़ कर क्षुधाा बुझाते केवल एक चिंता पेट भरने की कहीं गिद्ध दृष्टि से देखते कहीं दया भाव आंखों में लिए आने वाले पथिक से आशा लगाए देखते हैं। उनका ना कोई अपना होता है ना ही परिचित ना अपनों की पहचान, कहीं कोई ना जाने कौन छोड़ गया अपनों को कैसी दर्द भरी चुभन होगी मन में कैसे सड़क पर छोड़ते हुए नजरें फेरी होंगी भूखे प्यासे वृद्ध देह को अपने से दूर करते हुए उन्हें आत्मा ने धिक्कार नहीं यह कैसी कठोरता यह कैसी बर्बरता यह कैसी विडंबना अपनों के प्रति मील के पत्थर से दूर बहुत दूर होते हुए छटपटाहट तो हुई होगी दिल भी रोया होगा। फिर भी मानव यह क्यों नहीं मानता कि विकृति उस भिखारी को विरासत में नहीं मिली कि सी स्वजन परिवार समाज वालों की दी हुई यातनाएं उसके साथ जुड़ी हुई है जो उसे सड़क किनारे फटे कपड़ों में पेट की आग शांत करने के लिए दया दृष्टि लिए हाथ पसारे भीख मांगने को मजबूर है, उसके पास रखा कटोरा पूर्ण रूप से भरा हुआ है
फिर भी वह मांग रहा है शायद कल कुछ ना मिला तो इसी सोच में प्रातः से लेकर देर रात तक हाथ पसारे रहता है, सड़क किनारे यह कैसी नियति है जग की अपनों के लिए जिन्होंने अंगुली पकड़कर चलना सिखाया मानव मन इतना कठोर कैसे हो गया इस वर्तमान में समझ में नहीं आता मानव मन का फेर..।।

परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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