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कांटो की चुभन

राकेश कुमार तगाला
पानीपत (हरियाणा)
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कुसुम का रो-रो कर बुरा हाल था। सुबह से ही सारा परिवार गम में डूबा हुआ था। पतिदेव मुझें बार-बार समझा रहे थे। अब रोने से कुछ नहीं होगा। जल्दी चलने की तैयारी करो। लंबा सफर है बंटी की तबीयत बिगड़ गई हैं। जल्दी करो गाड़ी आ गई हैं। सफेद रंग की कार देखकर मेरा माथा ठनक रहा था। कहीं कोई अपशगुन तो नहीं हो गया। पता नहीं बंटी को क्या हो गया हैं? परसों ही तो मुझसे मिलकर गया था। उस समय वह बिल्कुल स्वस्थ लग रहा था।
रुपयों के लेन-देन को लेकर कुछ कहा-सुनी हो थी इनसे। मुझें दोनों ने ही कुछ भी नहीं बताया था। बंटी से पूछने की हिम्मत नहीं थी। और ये तो कुछ भी बताने को तैयार नहीं थे। जब इनसे बातचीत करने की कोशिश की तो सिर्फ इतना ही बोले थे। धन-दौलत, पैसा,जमीन-जायदाद बड़ी खराब चीज होती है। किसी के पास ज्यादा हो तो परेशानी, ना हो तो भी परेशानी। आखिर एकाएक उस दिन जमीन-जायदाद, धन-दौलत की बात कहाँ से आ गई? पर ऐसा लग रहा था। बंटी से कुछ न कुछ बात जरूर हो गई थी।
कार में बैठते ही मुझसे कहने लगे। घर जाकर बंटी और मेरी बातचीत के बारे में किसी से कुछ मत कहना, समझी तुम। पर हुआ क्या था? आप मुझें इस तरह क्यों समझा रहे हैं ? इसलिए समझा रहा हूँ कि औरत के पेट में कोई बात नहीं पचती। ठीक है मैं कुछ भी नहीं कहूंगी इस बारे में किसी से। कार सड़क पर दौड़ी जा रही थीं, अपने गंतव्य की तरफ। मेरा मन बंटी भैया को लेकर बड़ा चिंतित था। कार घर से थोड़ी दूरी रुक गई थी। घर के बाहर बहुत भीड़ थी। तभी भाभी दौड़कर आ गई।
कुसुम तुम्हारा ही इंतजार हो रहा था जल्दी चलो। मैं इनका चेहरा देख रही थी। क्या बंटी भैया नहीं रहे? इसका मतलब इन्हें पता था। जब सुबह फोन पर बातचीत हो रही थी। वह फोन मेरे मायके से ही था। जब मैंने इनसे पूछा तो इन्होंने इतना ही कहा था। चलो जल्दी करो बंटी की तबीयत बिगड़ गई है। अंदर बंटी भैया जमीन पर चादर ओढ़े लेटे थे। भाभी फूट-फूटकर रो रही थी। सभी रिश्तेदार मौन थे। मैं बुरी तरह तड़प उठी। बंटी भैया नहीं रहे थे।
भाभी कुछ बताने ही वाली थी कि अचानक ये भी अंदर आ गए। कुसुम, तीन-चार दिन से ये बड़े परेशान थे। कोई रुपए- पैसों का लेनदेन था। पर कुछ बता नहीं पा रहे थे। इनका काम मुझें कभी भी पसंद नहीं था। यह प्रॉपर्टी का काम आजकल सुरक्षित नहीं रहा था। मैंने कई बार कहा था कि इस काम में सारा रुपया ना लगाओ। बच्चे भी बड़े हो रहे हैं और इनकी चिंता भी करो। कल को इनकी शादी भी करनी है। पर यह किसी की बात मानते भी तो नहीं थे। तभी चाचा जी बीच में ही बोल पड़े। बेटी यह समय उचित नहीं हैं। इन बातों के लिए। अब बंद करो यह सब।
बंटी को अंतिम बार देख लो। घर में सब बुरी तरह रो रहे थे। एक- दूसरे को चुप करवाने का प्रयास कर रहे थे। बंटी अर्थी पर लेटा, ऐसा लग रहा था। जैसे अभी उठकर खड़ा हो जाएगा। दाह- संस्कार के बाद सभी अपने अपने घर लौट रहे थे। परिवार का हर सदस्य चुप था। बुआ जी, आप भी एक चाय ले लो। मैं चाय की चुस्की ले रही थी। तभी मेरी नजर पुराने अखबार पर पड़ी। ना हुए भी हाथ उसकी तरफ बढ़ गया। पहले ही पेज पर खबर छपी थी। पढ़-कर मैं हैरान थी। प्रेम-विवाह की वेदी पर चढ़ा एक और प्रेमी जोड़ा।
अखबार पढ़ते-पढ़ते, मैं भी अतीत की आगोश में खो गई। बंटी भैया को ये कभी भी पसंद नहीं थे। हमारे जाति एक ही थी। इनका हमारे घर बहुत आना-जाना था। रोज इनसे बातचीत, हँसी-मजाक करती थीं। पता ही नहीं चला ये बातचीत कब प्यार में बदल गई थी? जब बंटी भैया को पता चला तो उन्होंने मेरा बहुत विरोध किया था। वह किसी भी कीमत पर हमारा विवाह नहीं चाहते थे। मैंने भी घर पर विद्रोह कर दिया था। और भाग कर शादी कर ली थी। शादी करके सीधे घर आ गई थी। भैया से बहुत कहा-सुनी भी हुई थी। उन्होंने पहली बार मुझ पर हाथ भी उठा दिया था। पर मुझ पर तो प्यार का भूत सवार था। आखिर भाभी के समझाने पर उन्होंने हमें अपना लिया था। पर इस रिश्ते की चुभन मैंने हमेशा महसूस की थी कि भैया के मन में। ये रिश्ता कांटों की तरह चुभ रहा था, भैया को। वह मेरे घर भी बहुत कम आते थे। फिर परसों वह किसलिए आए थे।
भाभी-कुसुम, क्या सोच रही हो? कुछ नहीं भाभी, भैया अचानक चले गए। उनका स्वास्थ्य तो ठीक था। फिर ऐसा क्या हुआ था, भाभी? उनका चेहरा एकदम मुरझा गया था। इस सवाल के जवाब से। ना चाहते हुए भी इतना ही कह पाई थी। सुनील ने प्लाट के रुपए देने से मना कर दिया था। सुनील का नाम सुनते ही, मैं परेशान हो उठी, मेरे पति ने ऐसा क्यों किया? सुनील तो हमेशा बंटी भैया के साथ रहते थे। उन्होंने भी प्रॉपर्टी में खूब पैसा कमाया था। फिर ऐसा क्या हुआ जो सुनील ने–—?
परसो रुपए-पैसों को लेकर दोनों में कुछ कहा-सुनी तो हो रही थी। भैया का स्वभाव थोड़ा गर्म था। वह जल्दी ही उत्तेजित हो जाते थे। और सुनील का स्वभाव ठण्डा था। फिर कैसे इतना बड़ा अनर्थ हो गया था? मैं सच्चाई जान कर ही रहूँगी। चाहे मेरा रिश्ता ही ना रहे सुनील के साथ।
सुनील, मैं कुसुम बोल रही हूँ। मैं सिर्फ इतना ही पूछना चाहती हूँ। तुमने कौन से रुपए देने के लिए मना किया था मेरे भैया को? चुप क्यों हो सुनील?
सुनो, कुसुम तुम्हारे भैया अकेले ही सारा फायदा उठाना चाहता थे। जब भी प्रॉपर्टी बेचते मेरा हिस्सा देने से साफ मुकर जाते। इस बार मैंने साफ-साफ मना कर दिया। मैं आपके साथ काम नहीं करना चाहता। कुसुम, मैंने यह फैसला तुम्हारे लिए किया, अपने परिवार के लिए किया था। इसमें गलत क्या था?
सुनील के तीखें तेवर, पैसे के लिए उनका मोह मुझें कांटों की तरह चुभ रहा था। मैं खुद को कोस रही थीं। आखिर मैंने ऐसे आदमी से शादी क्यों की?
भाभी ने मुझें गुस्से में देख लिया। मेरा चेहरा गुस्से में तमतमा रहा था। भाभी, सुनील ही भैया की मौत का जिम्मेदार हैं। मैं उसे कभी माफ नहीं करूंगी। कुसुम, चुप करो। ये तुम क्या कह रही हो? हमें कोई भी फैसला लेने से पहले अच्छी तरह सोच-विचार करना चाहिए। स्थिति को समझना बहुत जरूरी होता है। तुम भी वही गलती कर रही हो, जो तुम्हारे भाई ने की थी। क्या मतलब भाभी? हाँ, मैं ठीक कह रही हूँ। तुम्हारा भाई तो अब तक भी यही चाहता था कि तुम सुनील को छोड़ दो। इस रिश्ते की चुभन अब भी उन्हें महसूस हो रही थी। इसलिए वह सुनील को नीचा दिखाने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते थे। सुनील हमेशा उन्हें बड़े भाई की तरह ही मानता था। वे जितना रुपए मांगते थे। वह बिना सोचे-समझे उनके हाथ में सौंप देता था। और तुम सुनील को त्यागना चाहती हो। पर भाभी मैंने अपने भाई को खो दिया। इसमें सुनील की ही भूमिका हैं।
नहीं पगली, रिश्ता में उतार-चढ़ाव आते रहेंगे। कांटों की चुभन हर रिश्ते में होती हैं। सुनील को फोन करो, जाओ अब क्या सोच रही हो।
सुनील, मुझें माफ कर दो। मैंने आवेश में आकर बिना सोचे-समझे ही। मैं आगे कुछ नहीं बोल सकी। चुप हो जाओ, कुसुम। तुम्हारा मन बहुत दुःखी था। इसलिए तुमने ऐसा व्यवहार किया। तुम भाभी से कहना हम उनके साथ हैं। अब हमारे रिश्तों में कांटों की चुभन नहीं, मिठास हैं। मैं फोन पर रो पड़ी। आज मुझें लग रहा था। मैंने सुनील को चुनकर कोई गलती नहीं की थी। आज मेरा मन कर रहा था। उड़कर सुनील के पास चली जाऊँ।

परिचय : राकेश तगाला
निवासी : पानीपत (हरियाणा)
शिक्षा : बी ए ऑनर्स, एम ए (हिंदी, इतिहास)
साहित्यक उपलब्धि : कविता, लघुकथा, लेख, कहानी, क्षणिकाएँ, २०० से अधिक रचनाएँ प्रकाशित।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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