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हां मैं बेटी हूं

मुस्कान कुमारी
गोपालगंज (बिहार)
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हां मैं बेटी हूं
जिससे ये
दुनिया चलती है
मुझसे है
सभी को नफरत
जिससे उनकी
पीढ़ी चलती है।

जब छोटी थी तो
हर ख्वाब
दिखाया गया
थोड़ी सी बड़ी हुई
तो हर ख्वाब
अधूरा सा रह गया
जब जिद्द की पूरा
करने की तो
घर में मुझे
बिठाया गया
अभी उलझने बहुत है
किसी तरह
जिंदगी चलती है
हां मैं बेटी हूं
जिससे ये
दुनिया चलती है।

पापा कहते समाज को
देखकर चलना है
मैंने कहा हमे ही तो
समाज को बदलना है
पापा ने कहा
समाज को तुम नहीं
समाज को देखकर
तुम्हे बदलना है।

मैंने कहा पापा
मुझे कुछ करने दो
पढ़ लिख कर
कुछ बनने दो
पापा ने कहा
तुम बेटी हो रहने दो
मैंने कहा पापा
अभी रहने दो
मुझे अभी रहना है
सबकी निगाहों में
पापा ने फिर वही कहा,
तुम बेटी हो तुम्हे
जाना है ससुराल में
फिर मैं इस घर को छोड़
दूसरे घर को चलती हूं
वहां पे भी दुख, दर्द,
डर सब सहती हू
हाँ मै बेटी हूं जिससे
ये दुनिया चलती है।

परिचय :- मुस्कान कुमारी
निवासी : गोपालगंज (बिहार)
शिक्षा : इंटर सेकेंडरी, सेंट्रल हिंदू गर्ल्स स्कूल वाराणसी

घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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