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पद का मद

सुधीर श्रीवास्तव
बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश)
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 ‘मद’ अर्थात ‘घमंड’ जी हाँ ! जिसका फलक विस्तृत भी है और विशाल भी।सामान्यतः देखने में आता है कि पदों पर पहुंचकर लोग खुद को शहंशाह समझने लगते हैं, पद के मद में इतना चूर हो जाते है कि अच्छे, बुरे, अपने, पराये का भी ध्यान नहीं रख पाते हैं।वे इतने गुरुर में जीते हैं कि वे ये भूल जाते हैं कि पदों पर रहकर पद की गरिमा बनाए रखने से व्यक्ति की गरिमा पद से हटने के बाद भी बनी रहती है। लेकिन पद का अहंकार कुछ ऐसा होता है कि लोग खुद का खुदा समझ बैठते हैं। ऐसे लोगों को सम्मान केवल पद पर रहते हुए ही मिलता है, लेकिन दिल से उन्हें सम्मान कोई नहीं देता। जो देते भी हैं, वे विवश होते हैं अपने स्वार्थ या भयवश और चाटुकारों की फौज उनका महिमामंडन और अपना हित साधती रहती है। ऐसे में पद के मद में चूर व्यक्ति इसी को अपनी छवि, अधिकार ,कर्तव्य और लोकप्रियता का पैमाना मान सच से बहुत ….बहुत दूर भागता रहता है। काश! पद पर रहते हुए यदि हम, आप केवल ये विचार करते रहें कि पदों की एक गरिमा है, जिसे बनाना ही नही, बनाए रखना भी पदासीन व्यक्ति का उत्तरदायित्व है। उसके लिए बस केवल इतना ध्यान रखने और विचार करने की जरुरत भर है कि उक्त पद पर यदि कोई अन्य व्यक्ति पदासीन होकर वही करे जो मैं कर रहा हूँ या करने की सोच रखता हूँ, तो मुझे पसंद आयेगा या नहीं। यदि नहीं तो फिर आपने ये कैसे मान लिया, जो आपको पसंद नहीं आता, वो दूसरे को भला कैसे पसंद आ सकता है।
पद महज एक जिम्मेदारी है, उत्तर दायित्व है जिसका गरिमामय निर्वहन पदासीन व्यक्ति की सिर्फ़ जिम्मेदारी ही नहीं कर्तव्य भी है।
इसलिए पद की गरिमा के विपरीत जाकर कुछ भी करना, पद के मद में चूर होकर तानाशाहों सरीखा आचरण करना पद का मान मर्दन तो करायेगा ही, आपके सम्मान, प्रतिष्ठा, छवि और सामाजिक, व्यवहारिक, पारिवारिक संबंधों ही नहीं आपको निजी तौर पर भी इतनी अधिक चोट पहुँचाएगा, जिसे सह पाना भी आपके लिए व्यक्तिगत तौर पर असहनीय भी हो सकता है। क्योंकि कि पद से हटने के बाद आपकी स्थिति निचुड़ चुके गन्ने जैसी होगी। आप के हाथ में किसी की स्वार्थपूर्ति का साधन जो नहीं होगा। ऐसे में तब उन चाटुकारों की फौज आपसे बहुत दूर कहीं और अपना उल्लू सीधा करने की जुगत में लगी होगी साथ ही आपकी बेवकूफी और मूर्खता का मजाक भी उड़ाती फिर रही होगी। तबाह पद के मद में खुद को कल तक शहंशाह मानने वाले आप केवल कुंठित और उन तात्कालिक स्वार्थी हितैषियों को सिर्फ़ कोसने के सिवा कुछ भी नहीं कर पायेंगे और पछतायेंगे।
फैसला आपको (पदासीन व्यक्ति) को करना है कि आपके लिए उचित, अनुचित क्या है? पद के मद में चूर होना या अपने को लोगों के दिलों में स्थापित करना? विचार जरूर कीजिए।

परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव
जन्मतिथि : ०१/०७/१९६९
शिक्षा : स्नातक, आई.टी.आई., पत्रकारिता प्रशिक्षण (पत्राचार)
पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव
माता : स्व.विमला देवी
धर्मपत्नी : अंजू श्रीवास्तव
पुत्री : संस्कृति, गरिमा
संप्रति : निजी कार्य
विशेष : अधीक्षक (दैनिक कार्यक्रम) साहित्य संगम संस्थान असम इकाई।
रा.उपाध्यक्ष : साहित्यिक आस्था मंच्, रा.मीडिया प्रभारी-हिंददेश परिवार
सलाहकार : हिंंददेश पत्रिका (पा.)
संयोजक : हिंददेश परिवार(एनजीओ) -हिंददेश लाइव -हिंददेश रक्तमंडली
संरक्षक : लफ्जों का कमाल (व्हाट्सएप पटल)
निवास : गोण्डा (उ.प्र.)
साहित्यिक गतिविधियाँ : १९८५ से विभिन्न विधाओं की रचनाएं कहानियां, लघुकथाएं, हाइकू, कविताएं, लेख, परिचर्चा, पुस्तक समीक्षा आदि १५० से अधिक स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर की पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित। दो दर्जन से अधिक कहानी, कविता, लघुकथा संकलनों में रचनाओं का प्रकाशन, कुछेक प्रकाश्य। अनेक पत्र पत्रिकाओं, काव्य संकलनों, ई-बुक काव्य संकलनों व पत्र पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल्स, ब्लॉगस, बेवसाइटस में रचनाओं का प्रकाशन जारी।अब तक ७५० से अधिक रचनाओं का प्रकाशन, सतत जारी। अनेक पटलों पर काव्य पाठ अनवरत जारी।
सम्मान : विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा ४५० से अधिक सम्मान पत्र। विभिन्न पटलों की काव्य गोष्ठियों में अध्यक्षता करने का अवसर भी मिला। साहित्य संगम संस्थान द्वारा ‘संगम शिरोमणि’सम्मान, जैन (संभाव्य) विश्वविद्यालय बेंगलुरु द्वारा बेवनार हेतु सम्मान पत्र।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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