Thursday, November 21राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

श्री ईशावास्योपनिषद्

निरुपमा मेहरोत्रा
जानकीपुरम (लखनऊ)
********************

श्री ईशावास्योपनिषद्
सरल काव्य प्रस्तुति


ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते.
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते…

प्रणव पूर्ण है, सम्पूर्ण है,
उनसे उत्पन्न जगत पूर्ण है।
उद्भूत इकाई लेने पर भी,
ईश्वर रहता परिपूर्ण है।।

..१..
ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किंच जगत्यां जगत्.
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्य स्विध्दनम्

सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का जड़ चेतन,
सब सम्पदा प्रभु आपकी।
मानव भोगे जो हो नियति में,
त्याग करे जो नहीं है उसकी।।

..२..
कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समाः.
एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे

निज कर्म हो उन्नत इस संसार में,
शत वर्ष जीने की यही हो साधना।
यदि देहधारी का पथ ईश हो,
फिर नहीं बांधेगी फल की कामना।।

..३..
असूर्या नाम ते लोका अन्धेन तमसाऽऽवृताः.
तांस्ते प्रेत्याभिगच्छन्ति ये के चात्महनो जनाः

आसुरी शक्ति से बने लोक में
घोर अंधकार का वास है।
अज्ञानी करता जब आत्मा का हनन,
मर कर जाता उसी के पास है।।

..४..
अनेजदेकं मनसो जवीयो नैनद्देवा आप्नुवन्पूर्वमर्षत्.
तध्दावतोऽन्यनत्येति तिष्ठत्तस्मिन्नपो मातरिश्वा दधाति

प्रभु बसे निज धाम अपने,
मन से अधिक गतिवान हैं।
देवता वश में हैं जिनके,
वे सृष्टि के भगवान हैं।।

..५..
तदेजति तन्नैजति तद्दूरे तद्वन्तिके.
तदन्तरस्य सर्वस्य तदु सर्वस्यास्य बाह्यतः

ईश चलें भी, नहीं भी चलते कभी,
बहुत दूर, पर अति निकट हैं यहीं।
व्याप्त है जिसमें अनन्त शक्तियाँ,
जीव के भीतर है, बाहर भी वही।।

..६..
यस्तु सर्वाणि भूतान्यात्मन्येवानु पश्यति.
सर्वभूतेषु चात्मानं ततो न विजुगुप्सते

ईश्वर बसा हर आत्मा में,
ऐसा जो साधक जानता है;
घृणा न करता वह किसी से,
सबमें उसी को देखता है।

..७..
यस्मिन्सर्वाणि भूतान्यात्मैवाभूद्विजानतः.
तत्र को मोहः कः शोकः एकत्वमनुपश्यतः

जो जानता हर जीव ही,
अंश ईश्वर का धरे है;
ज्ञानी वही होता जगत में,
मोह शोक से रहता परे है।

..८..
स पर्यगाच्छुक्रमकायमव्रणमस्नाविरं शुध्दमपाप विध्दम्.
कविर्मनीषी परिभूः स्वयंभूर्याथातथ्यतोऽर्थान् व्यदधाच्छाश्वतीभ्यःसमाभ्यः

साधक जानता है कि भगवन्,
पूर्ण पुरुषोत्तम हो तुम्हीं।
सर्वज्ञाता, शुद्ध, शक्ति,
इच्छा पूर्ति करते तुम्हीं।।

..९..
अन्धं तमः प्रविशन्ति ये विद्यामुपासते.
ततो भूय इव ते तमो य उ विद्यायां रताः

अविद्या की राह पर जो चले,
वही अज्ञानी अंधकूप में धंसे।
अति निकृष्ट हैं वे सभी,
तथाकथित ज्ञान के पंक में जो फँसे।।

..१०..
अन्यदेवाहुर्विद्ययाऽन्यदाहुरविद्यया.
इति शुश्रुम धीराणां ये नस्तद्विचचक्षिरे

विद्या का फल भिन्न होता,
यह मनीषियों का मानना है।
अज्ञान का फल है पृथक,
यह भी जरूरी जानना है।।

..११..
विद्यां चाविद्यां च यस्तद्वेदोभयं सह.
अविद्यया मृत्युं तर्त्वां विद्ययाऽमृतमश्नुते

विद्या और अविद्या के साथ-साथ,
जो आत्मज्ञान को भी जानता;
मुक्त हो आवागमन से,
अमरत्व का वर भोगता।

..१२..
अन्धं तमः प्रविशन्ति येऽसंभूतिमुपासते.
ततो भूय इव ते तमो य उ संभूत्यां रताः

अज्ञानी जन जो देव पूजे,
वे हैं बसे अंधकार में।
उनसे परम अज्ञानी वो,
जो निराकार में हैं रमे।।

..१३..
अन्यदेवाहुः संभवादन्यदाहुरसंभवात्.
इति शुश्रुम धीराणां ये नस्तद्विचचछरे

भिन्न फल मिलता उसे जो,
परम सत्य की करे अर्चना।
अन्य के पूजन से दूजा फल मिले,
धीर पुरुषों की है यही धारणा।।

..१४..
संभूतिं च विनाशं च यस्तद्वेदोभयं सह.
विनाशेन मृत्युं तीत्व्रा संभूत्यामृतमश्नुते

भान हो नश्वर जीवन का जिसे,
तथा बोध हो नश्वर जगत के सत्य का;
वही पार करता अनित्य संसार को,
चिर आनन्द पाता दिव्य तत्व का।

..१५..
हिरण्मयेन पपात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम्.
तत्वं पूषन्नपावृणु सत्यधर्माय दृष्टये

हे समस्त जीवों के पोषक,
मुख से तेज का परदा हटा दीजिए।
भक्त दर्शन करे आपके स्वरूप का,
ऐसी मुख मण्डल की छटा दीजिए।।

..१६..
पूषन्नेकर्षे यम सूर्य प्राजापत्यव्यूहश्मीन्समूह.
तेजो यत्ते रूपं कल्याणतमं तत्ते पश्यामि योऽसावसौ पुरूषः सोऽहमस्मि

हे पालनकर्ता आदि विचारक,
प्रजापतियों के कल्याण कारक;
तेज हटा कर दर्शन दे दो,
मैं तुच्छ जीव तुम नित्य नियामक।

..१७..
वायुरनिलममृतमथेदं भस्मान्तं शरीरम्.
ॐ क्रतो स्मर कृतं स्मर क्रतो स्मर कृतं स्मर

जब देह भस्मीभूत हो जाए,
प्राणवायु अनन्त में हो विलय;
स्मरण करना मेरे यज्ञादि को,
जो आपके चरणों में मैंने किए लय।

..१८..
अग्ने नय सुपथा राये अस्मान्विश्वानि देव वयुनानि विद्वान्.
युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो भूयिष्टां ते नमउक्तिं विधेम

तुम अति शक्तिशाली अग्निसम,
अवरोध हटा, सन्मार्ग दिखाओ।
नमन करूँ चरणों में भगवन्,
शरणागत को पास बुलाओ।।

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते.
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते..

प्रणव पूर्ण है, सम्पूर्ण है,
उनसे उत्पन्न जगत पूर्ण है।
उद्भूत इकाई लेने पर भी,
ईश्वर रहता परिपूर्ण है।।

परिचय :- निरुपमा मेहरोत्रा
जन्म तिथि : २६ अगस्त १९५३ (कानपुर)
निवासी : जानकीपुरम लखनऊ
शिक्षा : बी.एस.सी. (इलाहाबाद विश्वविद्यालय)
साहित्यिक यात्रा : कहानी संग्रह ‘उजास की आहट’ सन् २०१८ में प्रकाशित। अभिव्यक्ति साहित्यिक संस्था द्वारा प्रति वर्ष प्रकाशित कहानी संकलनों में कहानियां प्रकाशित। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कहानी, कविता, यात्रा वृत्तांत तथा लेख प्रकाशित।
सम्प्रति : भारतीय स्टेट बैंक से सन् २०१३ में सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वतंत्र लेखन एवं सामाजिक संस्था ‘श्री महिला शक्ति मंडल फाउंडेशन लखनऊ’ के माध्यम से सामाजिक सरोकारों से जुड़ाव।
सम्मान : लोपामुद्रा सम्मान- २०१८
घोषणा पत्र : यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अवश्य कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय  हिन्दी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 👉 hindi rakshak manch  👈… राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…🙏🏻.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *