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कान्हा से उलाहना

प्रेम नारायण मेहरोत्रा
जानकीपुरम (लखनऊ)
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कान्हा गोकुल में माखन खिलाया नही,
कैसे मानूँ की माखन खिलाते हो तुम।
किसी छीके पे माखन टंगा ही नहीं,
कैसे मानूँ की माखन चुराते हो तुम।
कान्हा गोकुल…

तेरी किरपा से आया हूँ ब्रजधाम में,
वो ही आता है जिसको बुलाते हो तुम,
आस्था तेरे चरणों मे जिसकी घटी,
उससे तत्काल ही रुठ जाते हो तुम।
कैसे मानूँ कि…

सब हैं राधा को तेरी नमन कर रहे,
इसलिए सबमें ही नज़र आते हो तुम,
जो भी तेरे लिए है तड़पता यहां,
उसके अंतर में शीघ्र समाते हो तुम।
कैसे मानूँ….

गायें गोकुल की तो कहीं जाती नहीं,
दूध माखन कहाँ चला जाता है फिर।
तुमको सब ज्ञात है, दृष्टि व्यापक तेरी,
देखना है कि कब रोक पाते हो तुम।
कैसे मानूँ की …

तेरे गोकुल का प्रसाद माखन नहीं,
इसलिए तुमसे शिकवा किया “प्रेम” ने,
तुमने ग्वालों को माखन खिलाया बहुत,
देखना है कि कैसे निभाते हो तुम।
कैसे मानूँ कि…

परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा
निवास : जानकीपुरम (लखनऊ)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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