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दगा न देना…

संजय जैन
मुंबई (महाराष्ट्र)
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बरखा का आना दिलको बहलाना
जिंदगी होती रंगीन।
दिलकी उमंगो से दिलकी तरंगो से
महक जाता है यौवन।
हो..बरखा का आना………..।।

रुख जिंदगी ने मोड़ लिया कैसा।
हमे सोचा नहीं था कभी ऐसा।
होता नहीं यकीन खुद पर
ये क्या हो गया।
किस तरह से ये दिल
बेबफा हो गया।
इंसाफ कर दो
मुझे माफ कर दो।
इतना तो कर दो
मुझे पर तुम रेहम।।
हो…बरखा का आना….।।

अवरागी में पड़कर
बन गया दिवाना।
मैंने क्यों तेरे
भावनाओं को न जाना।
चाहत क्या होती
ये तूने मुझे दिखलाया।
प्यार में जीना मरना
तूने ही सिखलाया।
चैंन मेरा ले लो
खुशीयाँ मेरी ले लो
और दे दो अपने गम।।
हो.. बरखा का आना…..।।

मेरे अश्क कह रहे मेरी कहानी।
इन्हें अब तुम न समझो पानी।
रो रो के आंसूओ से
मेरे दाग धूल गये है।
अब इनमें बफा के
रंग भरने लगे है।
खुशियाँ मैं दूंगा
तुमको हर पल।
बस एक बार तुम
मुझे पर कर लो यकीन।।

बरखा का आना दिलको बहलाना
जिंदगी होती रंगीन।
दिलकी उमंगो से दिलकी तरंगो से
महक जाता है यौवन।
हो..बरखा का आना….।।

परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं। ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी के चलते कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। आप मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखने के साथ-साथ मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है, आप लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।
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