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नारी तुम बदल न पाओगी….

डॉ. संगीता आवचार
परभणी (महाराष्ट्र)
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नारी तुम बदल न पाओगी!
सबकुछ सौंप जीवनसाथी को,
तुम जोगीनी बन जाओगी,
नारी तुम बदल न पाओगी!

फूल सी नाजुक काया को,
नारी तुम सम्भाल न पाओगी!
पुरुष पर जान लुटाने मे ही,
तुम अपना सुकून पाओगी!

नारी तुम दुनिया के बदलाव को!
ग़र अपनाना भी चाहोगी,
तो पुरुष के खयाल मात्र से ही,
तुम भ्रमित सी हो जाओगी!

नारी तुम अपने सुख चैन को,
पुरुष पे न्यौछावर कर जाओगी!
सूद बुध अपनी खो बैठोगी,
खुद को देख ही न पाओगी!

पाकर अनमोल जीवन को!
नारी तुम जी न पाओगी,
दूसरों के लिए जीने मे ही,
अपना अस्तित्व लुटाओगी!

दुनिया के छल कपट को!
नारी तुम समझ ही न पाओगी,
सीधी राह चलते हुए भी,
समझौतों पर उतर आओगी!

इस पत्थरदिल दुनिया को,
नारी तुम पहचान न पाओगी!
मोम सी पिघल ही जाओगी,
हसते ज़ख्म सहती जाओगी!

पहचानकर लोगों के स्वार्थ को,
नारी तुम बदल न पाओगी!
रिश्तों की वेदी पर तुम ही,
हर बार बली चढा दी जाओगी!

समझकर दुनिया की शतरंज को!
नारी तुम लड़ना न छोड़ोगी,
पुरुष जाती के अहंकार भी,
तुम चूर-चूर कर डालोगी!

नारी तुम बदल न पाओगी,
हरपल शिवधनुष्य उठाओगी!
ये दुनिया दंग रह जायेगी,
तुम प्रण पूरा कर जाओगी!

परिचय :- डॉ. संगीता आवचार
निवासी : परभणी (महाराष्ट्र)
सम्प्रति : उप प्रधानाचार्य तथा अंग्रेजी विभागाध्यक्ष, कै सौ कमलताई जामकर महिला महाविद्यालय, परभणी महाराष्ट्र
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।


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