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खुद की पहचान

संध्या नेमा
बालाघाट (मध्य प्रदेश)
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अब वो दौर आ गया
खुद की पहचान बनाते हैं
ऐसे दौर में खुद के लिए
कुछ कर दिखाना हैं

देखे है खुली आंखों से जो सपने
उनको सच कर दिखाना हैं
सपने भी पूरे होंगे
रास्ते का भी पता है
रास्ते में आने वाली
मुश्किलो का भी पता है

खुद की पहचान बनाना
कुछ करके दिखालाना
मंजिल को भी पाना है
खुद को उसके काबिल भी बनाना
जब उस मंजिल को पा लूंगी

तो मुझको भी बहुत खुश होंगी
मेरे परिवार को भी खुशी मिलेगी
मेरे चेहरे पर रौनक और
होठों पे होगी मुस्कान

जब मिलेगी खुद की पहचान
अब वो दौर आ गया है
खुद की पहचान बनाते हैं
ऐसे दौर में खुद के लिए
कुछ कर दिखाते हैं

परिचय : संध्या नेमा
निवासी : बालाघाट (मध्य प्रदेश)
घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है।


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