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भंवर में सफीना

अख्तर अली शाह “अनन्त”
नीमच (मध्य प्रदेश)
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गजल – १२२,१२२,१२२,१२२

भंवर में सफीना न हिम्मत डरी है।
न गम जो झुके हैं खुशी कब झुकी है।।

उधर एक कंधों पे वो जा रहा है।
इधर एक दुल्हन चली आ रही है।।

यही जिंदगी है मुसलसल लड़े जो।
गमों में खुशी गुनगुनाती फिरी है।।

महामारिया भी बहुत देख ली हैं।
डरें तो डरें क्यों खुदा तो नहीं है।।

खिंजा है कभी तो कभी हैं बाहरें।
झरे पात शाखे शजर तो हरी है।।

भले रात कितनी ही लंबी रही हो।
मगर रात की भी सहर तो हुई है।।

हकीकत यही है बता दो सभी को।
चली कब किसी की भी दादागिरी है।।

खुशी कब किसी की ऐ “अनंत” हुई है।
बड़ी बेवफा है बड़ी मनचली है।।

परिचय :- अख्तर अली शाह “अनन्त”
पिता : कासमशाह
जन्म : ११/०७/१९४७ (ग्यारह जुलाई सन् उन्नीस सौ सैंतालीस)
सम्प्रति : अधिवक्ता
पता : नीमच जिला- नीमच (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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