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झुठी कसम

डॉ. मोहन लाल अरोड़ा
ऐलनाबाद सिरसा (हरियाणा)
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बात बहुत पुरानी है छोटी उम्र छोटी क्लास प्राईमरी स्कूल मे जाते ही सबसे पहले यही पढाया गया… झूठ बोलना पाप है चोरी करना पाप है। नन्हें दिमाग मे यही बात बैठ भी जाती है। जैसे-जैसे बड़े होते गए झूठ बोलना तो आम बात हो गई कुछ मजबूरी मे, कुछ आदत हो गई कभी डर कर तो कभी हंसी मजाक से झूठ बोलना और झूठी कसम खाना रोजमर्रा की जिंदगी मे आम सी बात हो गई। बड़े हो गए पढ लिख गए नौकरी भी लग गई परंतु झूठ बोलना और झूठी कसम खाना भी जिंदगी के साथ बढ़ा गया भगवान कसम मैं झूठ नहीं बोल रहा… और झूठ ही बोल रहा था क्योंकि सच बोलने के लिए कसम खाने की आवश्यकता ही नहीं है माँ कसम मैने ऐसा नहीं किया, तेरी कसम आगे से ऐसे नही करूंगा। ऐसी कसमे रोजाना खाना जिंदगी का एक फैशन सा हो गया है, चाहे कसम खाने की आवश्यकता ही ना हो फिर भी भगवान की झूठी कसम क्योंकि भगवान बेचारा तो मरने से रहा माँ कसम, बेचारी माँ भी पहले से मरी हुई है। एक दिन पत्नी के साथ बहस हो गई और झूठी कसम खाने की आदत थी सो पत्नी से बोल दिया तेरी कसम मैं झूठ नहीं बोलता… जबकि बोल तो झूठ ही रहा था सो खा बैठा पत्नी की कसम, भगवान जी भी हमारी झुठी कसमो से तंग थे सो भेज दिया यमराज जी को उठा लाओ इसकी पत्नी को, फिर पता लगेगा झूठी कसम खाने का दिन मे दो बार तो मेरे को मार रहा है…। यमराज जी आ गये पत्नी को लेने तो मेरे तो होश उड गए यमराज बोले आपने इसकी झूठी कसम खाई हैं हम ले जा रहे हैं इसे, मै यमराज जी के सामने गिड़गिड़ाया महाराज मैने गलती की है तो सजा भी मुझे दो, मै अपनी झूठ बोलने की गलती मानता हूं इसको मत ले जाओ मै तो अकेला रह जाऊ़गा बच्चे सब अपने अपने काम में मग्न है मेरी रोटी, मेरा काम, मेरी सेवा कौन करेगा, प्रभु आप इसको छोड़ मुझे ही ले चलिऐ परंतु यमराज जी कहा मानने वाले थे सो ले गये…. मै बदहवास सा चिलाया सुनो प्रभु सुनो…. इतने मे नींद खुल गई देखा पत्नी पास ही ठीक-ठाक सोई हुई हैं अभी भी यकीन नही हो रहा था शुक्र है भगवान का यह सपना था। अगर सपना नही होता तो मोहन लाल तेरी यह झूठी कसम खाने की आदत तुझे अकेला कर देती अब कभी भी कसम नही खानी चाहे झूठी हो या सच्ची…।।

परिचय :- डॉ. मोहन लाल अरोड़ा कवि लेखक एवं सामाजिक कार्यकर्ता
निवासी : ऐलनाबाद सिरसा (हरियाणा)
प्रकाशन : ३ उपन्यास, ७२ कविता, ७ लघु कथा १२ सांझा काव्य संग्रह प्रकाशित, काव्याअंकुर मे ३७ रचना प्रकाशित
उपलब्धियां : मुलतानी साहित्य मे प्रसंशा पत्र, हिंदी रचनाओ मे बहुत प्रसंशा पत्र
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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