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हवा बहती जाए रे

मईनुदीन कोहरी
बीकानेर (राजस्थान)

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मन्द-मन्द, ठंडी-ठंडी।
हवा बहती जाए रे …
मन मन्दिर में मिलन की
घण्टी बजती जाए रे ….!

तेरे मन की भाषा को
कब से पढ़ते-पढ़ते
अब जुदाई को भी
सहा नहीं जाए रे ……!

मेरे मन की कलियां
खिल-खिल जाए रे…
उनकी प्यारी प्यारी यादें
मन में बहती जाए रे……..!

कब तक तड़पाओगे
प्रीत की डोरी से बांध के…..
प्यार के मौसम में मिलन की
प्यास बढ़ती जाए रे………!

प्रेम के सागर में
मन की बातें करते-करते….
कल-कल यौवन की नदियां
थर्र-थर्र मचलती जाए रे…..!

मेरे मन का गीत
कब सुनोगे तुम …
गाते-गाते आंसुओ से
आंखें छलकी जाए रे…..!

रूप सागर को कब
आ कर निहारो-गे…..
मेरे अल्हड़पन की अब तो
मुस्कान थमती जाए रे…..!

मुझे नैनों में बसा कर
घूंघट के पट कब खोलोगे…..
भरी गगरिया यौवन की
अब छलकी जाए रे…….!!!

परिचय : मईनुदीन कोहरी
उपनाम : नाचीज बीकानेरी
निवासी – बीकानेर राजस्थान
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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