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जनक दरबार

नितिन राघव
बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश)

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दरबार सजा मिथला नरेश का
धनुष रखा महादेव का
बैठे थे अनेक भूप
जो थे बडे़ कुरुप
उन्हीं में था कमल सा रुप
राम लखन का सुंदर स्वरुप
सीता को भाया राम रुप
सामने उनके थे सब कुरुप
दरबार में शंखनाद हुआ
शक्ति दिखाने का वक्त हुआ
राजाओं ने आजमायी ताकत
आ गई उनकी आफत
पूरी ताकत लगा कुछ नहीं मिला
धनुष उठाना तो दूर नही हिला
सारे राजा हो गए बेकार
जनक के मन में था हाहाकार
सोचा मेरा गलत था विचार
तभी उठे राम सुकुमार
पहले किया राम धनुष प्रणाम
फिर किया किसी से नहीं हुआ काम
एक हाथ से धनुष उठा दिया
चढ़ा चाप मध्य से तोड़ दिया
जनक सुता संग नाता जोड़ दिया
अचानक आ गयीं हों आंधी
महादेव की भंग हो गई समाधि
तीनों लोक एक साथ हिल गए
मानों देवासुर आपस में भिड गए
बिष्णु सहित शेषनाग भी डोल गए
ब्रहमा भी आसन छोड़ गएगए
परशुराम को आभास हुआ
महादेव के धनुष का नाश हुआ
उनका खून खौल गया
ब्रहमांड एक बार फिर डोल गया
परशुराम ने उठा लिया फरसा
त्रिलोक में होने लगी चर्चा
वे स्वयं स्वयमवर में पहुँच गए
क्रौध में ऐसे बोल गए
कौन है वो माई का लाल
किया जिसने धनुष का हाल बेहाल
तब बोले लखन लाल
भैय्या के छूने से हुआ ये हाल
अगर तुमने किया ये हाल
मैं बन जाऊँगा तुम्हारा काल
राम ने परशुराम को शीश नवाया
अपना नारायण रुप दिखाया
अब उन्हें समझ आया
ये है नारायण कि एक और माया

परिचय :- नितिन राघव
जन्म तिथि : ०१/०४/२००१
जन्म स्थान : गाँव-सलगवां, जिला- बुलन्दशहर
पिता : श्री कैलाश राघव
माता : श्रीमती मीना देवी
शिक्षा : बी एस सी (बायो), आई०पी०पीजी० कॉलेज बुलन्दशहर, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ से, कम्प्यूटर ओपरेटर एंड प्रोग्रामिंग असिस्टेंट डिप्लोमा, सागर ट्रेनिंग इन्स्टिट्यूट बुलन्दशहर से
कार्य : अध्यापन और साहित्य लेखन
पता : गाँव- सलगवां, तहसील- अनूपशहर जिला- बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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