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कुछ हो गया

विजय गुप्ता
दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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नयनों से निकला अंजन ध्यान नहीं,
बस धीरे से लगा कुछ खो गया

वाकपटुता व्यवहार से व्यतीत वर्ष
बदलाव के बेगैरत बीज बो गया

टीस चोट स्नेह अंतहीन विवाद
भाव प्रभाव सजल नयन रो गया

उत्सव भी पाये उडते पक्षी सदृश्य
उत्साही हृदय-व्यथा रुदन, वो गया

कल आज कल का वक़्त पुष्प
देखते, सूंघते, समझते ही खो गया

सोचा नहीं कभी कुछ जीवन में
आहुति नीति पुरुषार्थ सब धो गया

साहस मंजर कभी सैलाब सा था
अंतर्मन उड़ान को रोग हो गया

परस्पर भाव बोधगम्य जीवन भी
यादों की ताकत देकर सो गया।

परिचय :- विजय कुमार गुप्ता
जन्म : १२ मई १९५६
निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़

उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग
साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा प्रशंसा पत्र
काव्य संग्रह प्रकाशन : १ करवट लेता समय २०१६ में, २ वक़्त दरकता है २०१८
राष्ट्रीय प्रशिक्षक : (व्यक्तित्व विकास) अंतराष्ट्रीय जेसीस १९९६ से
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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