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धनुआ क माई

ओंकार नाथ सिंह
गोशंदेपुर (गाजीपुर)
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मेरे पड़ोस के ही गांव सोना का पूरा में कल्लू सेठ अपनी धर्मपत्नी के साथ रहा करते थे जिनको एक लड़का धनंजय नाम का था घर और गांव के लोग उसे धनुआ कह कर बुलाते।
कुछ दिन के बाद कल्लू का एक्सीडेंट हो गया वो बचाया नहीं जा सका धनुआ और उसकी मां पर तो वज्रपात ही हो गया। स्थानीय लोगों द्वारा सरकार से पैरवी करा कर धनुआ की मां को ३००००० लाख रु. की सहायता मुख्यमंत्री राहत कोष से मिल गए।
अनुदान पा कर मां बेटा बहुत खुश हुए अब जैसे तैसे गाड़ी चलने लगी इसके अतिरिक्त इनके पास आयका अन्य स्रोत नहीं था गरीब की औरत पूरे गांव की भौजाई भौजाई….
गांव के लोगों की राय से धनुआ का नाम एक अच्छे अंग्रेजी स्कूल में लिखवा दिया गया अब पैसों की आवश्यकता महसूस होने लगी गांव के कुछ लोग धनुआ की मां को भऊजी पांव लगी कहने लगे धनुआ की मां चीढ़ती थी धीरे-धीरे सब को आशीर्वाद देने लगी लोग दया बस कुछ न कुछ पैसा रुपया कपड़ा गांव के लोग देने लगे अब उसका काम अच्छे ढंग से चलने लगा।
अब धनुवा के मां अच्छे से रहना खाना पीना होने लगा और धनुआ का नाम यूनिवर्सिटी में लिखवा दिया गया पढ़ने में कुशाग्र धनुआ बहुत अच्छे नंबरों से बी ए पास कर लिया और सिविल सर्विस की तैयारी करने लगा मेहनत रंग लाई प्रथम प्रयास में ही धनुआ आईएएस परीक्षा उत्तीर्ण कर कलेक्टर बन गय।
गांव वालों ने धनुआ के गांव पहली बार आने पर दिल खोलकर स्वागत किया धनुआ भी किसी को निराश नहीं किया आप लोगों के बदौलत ही यह दिन देखने को मिला है मैं इस गांव ग्राम वासियों को कभी नहीं भूलूंगा।
किया भी वैसा ही जैसा कहा था गांव के गरीब बच्चों की शिक्षा पर खर्च यही नहीं शादी होने के बावजूद परिवार को जितना खर्च नहीं करता था गांव के सर्वांगीण विकास में योगदान देने लगा अब धनुआ धनंजय कुमार सोनी हो चुका था परिवार से अधिक गांव को ही परिवार मान लिया धनुवा की माई गांव की प्रधान बनकर ग्राम की प्रथम महिला बन चुकी है वाह दिन बदले तो ऐसे पूरी कथा काल्पनिक है किसी का नाम कथानक मेल खाता हो तो महज संजोग कहा जाएगा।

परिचय :-  ओंकार नाथ सिंह
निवासी : गोशंदेपुर (गाजीपुर)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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