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ठोकर

डॉ. मोहन लाल अरोड़ा
ऐलनाबाद सिरसा (हरियाणा)
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नही रोड़ा मैं किसी के भी रास्ते का
सपने देखने का हौसला मैं भी रखता हूँ
चाहे छुपा लो सितारों को उजालो मे तुम
नजर भर उन्हें मै भी ताकता हूँ
रखा है रास्तों ने ठोकर पर तेरी चाह
पर मंजिलो पर नजर मै भी रखता हूँ
जाने कितने कदम गुजर गए यूँ ही
हर कदम के निशान याद मै भी रखता हूँ
भटक जाते है लोग अक्सर यहाँ भी
पते उनके रास्तों के याद मै भी रखता हूँ
नहीं समझेगा कोई तेरी ठोकर के दर्द को
यह इल्म तो बस मै ही रखता हूँ
गुजर जाते हैं लोग खामोशी से ठुकरा कर
उनके दर्द की कहानी मै ही याद रखता हूँ
मिलेंगे तुझसे… जब तु खाक ऐ सपुर्द होगा
इंसानो की हस्ती को बस मै ही समझता हूँ
ना लगे कोई ऊपर वाले… की ठोकर
उस ठोकर का दर्द बस मै ही समझता हूँ

परिचय :- डॉ. मोहन लाल अरोड़ा कवि लेखक एवं सामाजिक कार्यकर्ता
निवासी : ऐलनाबाद सिरसा (हरियाणा)
प्रकाशन : ३ उपन्यास, ७२ कविता, ७ लघु कथा १२ सांझा काव्य संग्रह प्रकाशित, काव्याअंकुर मे ३७ रचना प्रकाशित
उपलब्धियां : मुलतानी साहित्य मे प्रसंशा पत्र, हिंदी रचनाओ मे बहुत प्रसंशा पत्र
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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