डॉ. पंकजवासिनी
पटना (बिहार)
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मूलमती-मुरलीधर की बगिया खिला फूल इक राम!
आजादी इतिहास में तरुण क्रांतिकारी सरनाम!!
बिस्मिल तेजस्वी कवि, शायर औ क्रांतिकारी प्रखर!
हा अमर बलिदानी विस्मृत! कृतज्ञ बनो राष्ट्र दो स्वर!!
जन्म शाहजहांपुर, गोरखपुर जेल में अंत जीवन!
जर्जर संरक्षित बिस्मिल कक्ष! करो धरोहर संरक्षण!!
आर्य समाज से जुड़े सत्यार्थ प्रकाश का किया मनन!
स्वाध्याय नियमित व्यायाम संग सुबह शाम हवन!!
बिस्मिल की थी इकहि चाह हर जन्म भारत में पाऊंँ!
प्रेम हिंदी से हो अतुल! ओढूँ हिंदी औ बिछाऊँ…!!
उर में नहीं भड़कते थे सिर्फ आजादी के शोले!
कविता और शायरी की भाषा कलम उनकी बोले!!
चौरा-चौरी कांड बाद कांँग्रेस ली वापस असहयोग आंदोलन!
तो जुड़े राम हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन!!
चंद्रशेखर आजाद नेतृत्व यहांँ सशस्त्र क्रांति!
हुआ बिस्मिल का मोह भंग कांँग्रेस-नीति लगी भ्रांति!!
काकोरी कांड के महानायक को था इतना ताब!
हथियारों के लिए राम बेचे अपनी सृजित किताब!!
ट्रेन में ढोया जा रहा था जो सरकारी खजाना!
सशस्त्र क्रांति हित काकोरि में लूटा उसे दिवाना!!
अंँग्रेजों के क्रूर शासन से कराया देश आजाद!
स्वातंत्रय-फसल उगाने में दी स्व-आहुति की खाद!!
“सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है”!
“देखना है जोर कितना बाजुए-कातिल में है”!!
कविता से जेल में ही बहा दी देशभक्ति की धार…!
फांँसी का फंदा कर लिया हंँसते-हंँसते स्वीकार!!
बलि-क्षण भावुक देख, माँ बोली दुर्बल! रख हिय प्रस्तर!
कहे राम तव बिछरन के आंँसू मांँ! नहीं मौत का डर!!
राष्ट्र-बलिवेदी पर हो गए राम बिस्मिल बलिदान!
पर भूला राष्ट्र! नहीं दे सका उन्हें उचित स्थान!!
परिचय : डॉ. पंकजवासिनी
सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय
निवासी : पटना (बिहार)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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