Friday, November 22राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

भूल गई थी सच्चाई ये

अख्तर अली शाह “अनन्त”
नीमच (मध्य प्रदेश)
********************

भूल गई थी सच्चाई ये,
वो अपनी नादानी से।
मछली कैसे रह पाएगी,
दूर, गई जो पानी से।।

मानवता तो आभूषण है,
मरने तक जो साथ रहे।
मानव कैसे भुला सकेगा,
मानवता मनमानी से।।

तर्क जीत भी जाए लेकिन,
सच तो हार नहीं सकता।
ज्ञानी कब हारा है लोगों,
दुनिया में अज्ञानी से।।

नाहक, चुपड़ी रोटी खाए,
हक जेलों में सिर पीटे।
आंखें देख रही है मंजर,
सारा ये हैरानी से।।

नम होने की देर फकत है,
मिट्टी है जरखेज बहुत।
जल्दी ही चहकेगा गुलशन,
बाहर आ वीरानी से।।

माना जान है तुझमें लेकिन,
है क्या जानवरों सा तू।
कब तक दूर रखेगा खुदको,
तू फितरत इंसानी से।।

दूर करें क्यों “अनंत” उनको,
रूहें जिनकी एक हुई।
मर जाता है दूर हुआ तो,
दीवाना, दीवानी से।।

परिचय :- अख्तर अली शाह “अनन्त”
पिता : कासमशाह
जन्म : ११/०७/१९४७ (ग्यारह जुलाई सन् उन्नीस सौ सैंतालीस)
सम्प्रति : अधिवक्ता
पता : नीमच जिला- नीमच (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अवश्य कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय  हिन्दी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 👉 hindi rakshak manch  👈… राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें….🙏🏻.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *