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प्रिय डायरी

संजू “गौरीश” पाठक
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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प्रिय डायरी,
आज तुम फिर मेरे हाथ आ गईं। अच्छा हुआ !! अब मैं तुमसे ढेर सारी बातें करूंगी। इसलिए कि आज मेरे पापा की द्वितीय पुण्य तिथि है। सुबह से बहुत याद आ रही है उनकी। तुम्हारे माध्यम से मैं अपने पापा से ही बातें करूंगी।
पापा, सुनोगे न मेरी बातें। आज के दिन २०१९ में लगभग ११ बजे भैया ने जब मुझे फोन किया तो मैं सिहर सी गई। पिछले चार पांच दिन से मुझे नींद नहीं आ रही थी। एक अजीब सी बेचैनी हो रही थी। आपने फोन उठाना भी बंद कर दिया था। चिंता लगने लगी थी। जरा सी बात करके फोन रख देते थे तो भी मन को शांति मिल जाती थी। दो सेकंड बात करके आप फोन मम्मी को पकड़ा देते थे।
जैसे ही भैया ने दीदी बोला, उसका गला रूंध हुआ था। बोल ही नहीं पाया। बोला, दीदी, पापा चले गए। कैसे, क्या, कब इन सब सवालों के जवाब न मैं पूछने की स्थिति में थी, ना वह जवाब देने की स्थिति में।
नाश्ते की प्लेट हाथ से छूटकर गिर गई। ऐसा लगा कुछ पल के लिए जैसे किसी ने उठा कर पटक दिया हो। तुम नाश्ता करने चली हो और तुम्हारे पापा तुमसे बहुत दूर जा रहे हैं।
मेरी इनसाइक्लोपीडिया मुझसे जुदा हो गई हमेशा के लिए। बहुत सारी बातें पूछनी थी पापा आपसे। सारे प्रश्न अनुत्तरित रह गए मेरे। मेरी हर मुश्किल में मेरा मनोबल बढ़ाने वाली मेरी ताकत थे आप। जीवन की मुश्किलों को धैर्य के साथ कैसे सुलझाना है, आपने ही सिखाया पापा, वरना मैं तो कब की निढाल हो चुकी होती।
मेरे प्यारे पापा! गज़ब की सहनशीलता, गंभीरता, धैर्य, वाकपटुता, विश्लेषण क्षमता, इंसान को परखने की कला एवं स्थितिप्रज्ञता थी आपमें। आपकी ये सारी खूबियां आपको विलक्षण पापा बनाती थीं। मम्मी भी आप पर बहुत नाज़ करती थीं। बड़े गर्व से कहती थीं, तुम लोग बहुत भाग्यशाली हो, तुम्हारे पापा को हर क्षेत्र में बहुत ज्ञान है। अभी आपको वे बहुत मिस करतीं हैं पापा। आपको याद करते-करते रो देतीं हैं।
घर के सभी बच्चे और हम सब आपके पितृ ऋण से कभी भी उऋण ना हो पाएंगे पापा।
आज फिर मैं अपनी रचना आपको सुनाना चाहूंगी जिसे मैंने आपकी पहली पुण्यतिथि पर लिखा था।

हैलो पापा! कैसे हैं आप?
देखो,आज आपकी प्रथम
पुण्यतिथि भी आ गयी।

एक बरस बीत गया।
आपको देखा तक नहीं,
परंतु ऐसा कोई दिन भी याद नहीं,
जब आपसे बातें नहीं कीं।

स्कूल के वह कुछ घंटे ही
आप हमसे दूर होते हैं,
क्योंकि आप ही तो कहते थे,
‘वन थिंग एट ए टाइम’
ये अच्छी तरह याद रहता है मुझे पापा।।

आपसे बातें करत -करते
किचन का कार्य कब
ख़त्म हो जाता है,
पता ही नहीं चलता पापा !!

आपकी बगिया के सारे फूल
बहुत मिस करते हैं आपको।

ज़रा सी बात पर किसी भी बच्चे का
मुंह फुला लेना और फिर आपका
सूक्ष्म निरीक्षण कर
ये कहना-नहीं भाई
‘पेल फेसेज आय डोन्ट लाइक’
सुनते ही
चेहरे का तुरंत खिल जाना,
बहुत याद आता है पापा।।

याद आते हैं वह पल,
हम बच्चों की महफ़िलें जमाना।
ज्ञान, विज्ञान,साहित्य,संस्कृति,
धार्मिक, एवं अंग्रेजी के नावेल,
हेमलेट, ओथेलो, मर्चेंट आफ वेनिस
बिना पुस्तकों को खोले,
उनके डायलाग्स रटाना।

फिर हम बच्चों के बीच में,
प्रतियोगितायें करवाकर
उत्साहवर्धन के साथ काव्य पाठ कराना
और इस बहाने अधिकांश
कवितायें मुखाग्र कराना ।।

याद हैं मुझे आज भी,
हेमलेट ड्रामा के
जीवन-सूत्र वाक्य-
“गिव दाय थाट्स नो टंग,
बी दाउ फेमिलयर,
बट बाय नो मीन्स वल्गर….”
एंड व्हाट नाट…

सुनिए ना पापा!!!
आपके द्वारा रचित
आपका सारा साहित्य बटोरकर,
कराया है प्रकाशित उसे,
हम सब बच्चों ने मिलकर।
दिया है उसे ‘शंकर साहित्य’ का नाम,
श्रद्धांजलि के रुप में
आपकी इस प्रथम पुण्यतिथि पर।।

ख़्वाहिश है यह गर
पुनर्जन्म मिले
फिर से प्रभु हमें
अपने पापा की ही
सुखद गोद मिले।।

क्यों कहते हैं लोग
कि पितृ-दिवस है आज।
हमारा तो हर दिन ही है आपसे …

अभी मेरी बात
ख़त्म नहीं हुई पापा…
इसलिए पुनश्च: …. आपकी लाडो ‘कक्कड़’

परिचय :- संजू “गौरीश” पाठक
निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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