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मासूम सपने

कीर्ति मेहता “कोमल”
इंदौर (मध्य प्रदेश)

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ये कहानी है सपनों की नगरी कहे जाने वाले, मुंबई जैसे महानगर की एक, नाले के पास बसी छोटी सी बस्ती में रहने वाले, १३ साल के लड़के साहेब की। जो कूड़े के ढेर से ओर गन्दे नालों से कूड़ा बीनने का काम करता है!
इस उम्मीद में की इस कूड़े के ढेर में या नाले में कही कुछ सिक्के मिल जाये जो उसके खाली पेट को थोड़ा सा भर सके।
“मैं हूँ उस बस्ती के पास ही बनी एक २५ मंजिला बिल्डिंग में रहने वाली एक वर्किंग वीमेन जो अपने ऑफिस आते-जाते समय अक्सर उस बच्चे को देखती हूँ!!!”
उसको देख कर लगता ही नहीं की उसका वो गंदगी में कुछ ढूंढने का काम उस पर भारी है, अपने कंधे पर वो टाट की बोरी लेकर, बेफिक्र हो, इस अंदाज में घूमता है, मानो कहीं का बादशाह हो। छोटी छोटी मगर, एक अजीब सी चमक ओर गहराई लिए उसकी वो आँखें, ऐसी थी मानो दुनिया भर की समझदारी उनमें भरी हो!! उसके चेहरे की वो बेफिक्र मुस्कान मुझे बरबस ही आकर्षित करती थी!!! उसके प्रति मेरी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी!!
आज सुबह से ही बारिश हो रही थी और ऑफिस जाने का बिलकल मन नहीं था! लेकिन घर पर रहकर भी कोई फायदा नहीं था!!! बड़े ही अनमने मन से मैं तैयार होकर निकली तो देखा की आज वो बच्चा बिल्डिंग के मेन गेट के सामने, अपनी कचरे की बोरी को सिर पर ढके, गीले होने से बचने की कोशिश कर रहा था!! न जाने क्यों मगर अनायास ही मेरे कदम उसकी ओर बढ़ गए!!
मैं अपना छाता उसके सिर पर लगा कर खड़ी हो गयी!! उसकी चमकदार आँखे अब हैरानी से मुझे देख रहीं थी!!!!
मैने पूछा- “क्या नाम है तुम्हारा मैं अक्सर तुम्हें यहां वहां कूड़ा बीनते देखती हूँ”!!!
वो मुस्कुराते हुए बोला… साहेब …..
उसकी आवाज़ में नाम बताते हुए एक रोब था जैसे कोई महाराजा हो!!! उसकी मासूमियत पर में बरबस मुस्कुरा उठी!! उसके बारे में जानने की मेरी उत्कंठा बढ़ गयी। मैंने पूछा चाय पियोगे…??
उसने संकोच से कहा “नहीं”…
लेकिन मैं भी कहाँ मानने वाली थी!
आखिर उसे बिल्डिंग के पास बने, फुटबॉल ग्राउंड के करीब चाय की गुमटी पर ले गयी!! मैंने दो चाय ऑर्डर की, ओर पास ही रखी लकड़ी की बेंच पर बैठ गयी और उसे भी बैठने का इशारा किया।
मैनें उससे सवाल किया- “तुम्हारी उम्र के बच्चे तो बारिश में शौक से भीगते हैं तुम तो बच रहे थे।”
“मेमसाहब मेरे पास ये एक ही जोड़ कपड़े हैं अगर गीले हो गए तो फिर पहनूंगा क्या??” वो बड़े ही सहज भाव से बोला!!!
मैनें आश्चर्य से पूछा लेकिन तुम जो ये दिनभर कूड़ा बीनते हो कुछ कमाई नही होती..??
“कहाँ मेमसाहब एक टाइम का खाना नसीब हो जाये वही बहुत है”…. वो बोला!
ओर तुम्हारे माँ बाप वो क्या करते हैं”…..???
मेरी माँ भी कूड़ा बिनती है, वो उधर दूसरी जगह जाती है, मुझे बस्ती से दूर नही जाने देती।
“ओर बाबा ..??”
अब मैंने उत्सुकता से पूछा…
उसने कहा- “बाबा..?? वो तो मर गए, वो मुंसिपाल्टी में काम करते थे एक दिन ऐसे ही तेज़ बारिश में एक रुके हुए चेम्बर की सफाई करते करते उसी में डूब गए!!!”
ये बताते हुए उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं थे!!
“अच्छा!! तुम्हारा नाम साहेब किसने रखा”..?? मैनें बात बदलते हुए पूछा….
“नाम ..ये नाम तो मैंने खुद रखा है” वो बड़े रोब से बोला!!! उसका ये अंदाज देख कर मुझे हँसी आगयी!
मैंने पूछा ओर माँ बाप ने क्या नाम रखा था…?
वो तपाक से बोला “मुन्ना”….
तो तुमने साहेब क्यों रख लिया..?? मैंने फिर पूछा ….
इस बार उसका जवाब मुझे लाजवाब कर गया!!
“मेमसाब मैं अपनी मर्जी का मालिक हूँ जो मैं चाहता हूँ बस वही करता हूँ इसलिए मैं साहेब हूँ” वो मुस्कुरा कर बोला!!!
अब मुझे लगा कि वो सच मे “साहेब” ही है! चाय के साथ बिस्किट का पैकेट मैंने उसे थमाया!! उससे बात करने में अब मुझे मज़ा आरहा था!!
चाय पीते हुए मैंने एक ओर सवाल दागा-
“तुम्हें पढ़ना अच्छा लगता है”..??
उसने नहीं में गर्दन हिलाई, ओर ग्राउंड की तरफ इशारा करते हुए बोला- “मुझे फुटबॉल खेलना अच्छा लगता है।”
मेरी नज़र उसके नंगे पैरों पर गयी मैंने पूछा “चप्पल क्यों नहीं पहनते”..???
“क्या करूंगा चप्पल पहन कर नाले में उतरने में परेशानी होती है, कीचड़ में फंस जाती है” वो बोला!!
नाले में कितनी गन्दगी ओर कीचड़ होता है तुम ये काम छोड़कर कुछ और क्यों नही करते..??
उसके जवाब देने से पहले ही मैंने चाय वाले काका से बोला…..”काका आप इस बच्चे को काम पे रखिये मैं इसकी जवाबदारी लेती हूं”!!
मेरी बात का असर इतना हुआ कि काका ने हाँ बोल दिया और साहेब भी ५०० रुपये सुनकर काम के लिए तैयार हो गया!!
मैंने वक़्त देखा ऑफिस टाइम निकल चुका था!! उससे फिर मिलने का बोलकर, मैं घर लौट आयी!! उस रात मुझे नींद नही आई!!! जीवन के संघर्ष ने उस मासूम बच्चे को कितना परिपक्व बना दिया था!!! सेटरडे सन्डे ऑफ था!! मंडे को मैं थोड़ा जल्दी ही घर से निकल गयी सोचा साहेब से मिलकर जाती हूँ!!!

मैंने बाहर निकल कर देखा, साहेब काका की दुकान पर ग्राहकों को चाय दे रहा था, मगर आज उसके चेहरे की वो चमक उसकी बेफिक्री नदारद थी!! ऐसा लग रहा था जैसे उसके हाथ मे थमी चाय की केटली, उसके उस कूड़े कबाड़ की बोरी से ज्यादा भारी थी!! उसकी नज़र मुझसे मिली, उसने हाथ हिलाया तो मेरे कदम अनजाने ही फिर एक बार, उसकी तरफ उठ गए!! मैं बेंच पर बैठ गयी वो मेरे पास चाय का गिलास ले आया!!

मैंने गिलास हाथ मे लेते हुए पूछा- “साहेब.. क्या हुआ तुम्हारा चेहरा बड़ा फीका लग रहा है…..?”
“ये काम तुम्हें नाले से कूड़ा उठाने से, कम पसन्द आया ..???”
“उसने जो जवाब दिया वो मुझे “निःशब्द” कर गया…..”
वो बोला…..”नहीं दीदी ऐसा नहीं है, (आज उसने मेमसाहब की जगह दीदी पुकारा) वो काम जब करता था तो मुझे कोई रोकने टोकने वाला नहीं था, मैं अपनी मर्ज़ी का मालिक था उस बोरी में भले ही कूड़ा भरा होता था पर वो बोरी मेरी अपनी थी,…..
लेकिन यहाँ मेरा मालिक कोई और है, ओर ये केटली जो मेरे हाथ में है वो भी मेरे मालिक की है, मेरा यहां कुछ नही है……”
हे कृष्णा!!! उसके जवाब में कितनी गहराई थी….
अचानक उसकी नज़र कहीं पड़ी, न जाने उसको ऐसा क्या दिख गया था कि वो केटली बेंच पर रख कर उस ओर दौड़ पड़ा!!
क्या हुआ जानने के लिए मैं भी उसके पीछे गयी और जो मैंने देखा वो देख कर मैं एक बार फिर हैरान हो गयी!!! साहेब सफेद रंग के जूते हाथों में लिए खुशी से झूम रहा था!! मैं कुछ कहती उसके पहले वो जूते, उसके पैरों में थे और वो जैसे फुटबॉल को किक मार रहा हो ऐसे पैर चला रहा था!!

तभी मैंने देखा कि दाहिने जूते में अंगूठे की ओर एक छेद था शायद किसी अमीर बच्चे ने छेद हो जाने की वजह से वो जूते वहीं छोड़ दिये थे और उनको पहन कर साहेब इतना खुश था, मानो उसके सारे सपने पूरे हो गए हों !! मेरी आँखों से आँसू बह निकले थे न जाने ऐसे कितने ही मासूमों की ज़िंदगी इन गंदे नालों, ओर इनके आसपास गुज़र रही होगी!!

क्या उनकी किस्मत कभी बदलेगी….???
क्या उनके मासूम सपने कभी पूरे होंगे…??
ये ऐसे ज्वलन्त सवाल थे जिनका जवाब शायद ही किसी के पास हो!

परिचय :- कीर्ति मेहता “कोमल”
जन्मतिथि : १९ दिसम्बर १९७६
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : बीए संस्कृत, एम ए हिंदी साहित्य
सम्प्रति : मेकअप आर्टिस्ट, समाजसेवा
लेखन विधा : गद्य और पद्य की सभी विधाओं में समान रूप से लेखन
रचना प्रकाशन : साहित्यिक पत्रिकाओं में, कविता, कहानी, लघुकथा, गीत, ग़ज़ल आदि का प्रकाशन, आकाशवाणी से प्रसारण।
प्राप्त सम्मान : अभिव्यक्ति साहित्यिक मंच नागदा से तथा शब्दप्रवाह उज्जैन द्वारा प्राप्त
लेखनी का उद्देश्य : जानकारी से ज्ञान प्राप्त करना। )
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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