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वनिता

अनन्या राय पराशर
संत कबीर नगर (उत्तर प्रदेश)
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हे नारी !! तुम्हें भय कैसा
आँखों मे अश्रु और
माथे पर ये लकीरें…??
तुम्हें दुख किस बात का है…??
ऐसी कौन सी पीड़ा है जो
तुम्हें अंदर ही अंदर खाये जा रही…??

मैं क्या कहूँ कैसे कहूँ, मुझसे कुछ कहा भी नहीं जा रहा। मैं इस युग में खुद का अस्त्तित्व मिटते देख रही हूँ। मैं अबला जैसे नामों से पुकारी जा रहीं हूँ। मेरे हाथों में सजी ये हरी लाल चूड़ियाँ कमज़ोर एवं नकारे इंसान के लिए प्रयुक्त होने लगी हैं। और पैरों में सजे ये पायल बेड़ियों का रूप ले चुके हैं। मेरे अपने भी मुझे भार समझ बैठे हैं। उन्हें लगता है मैं कमजोर हूँ, मैं कुछ नहीं कर सकती। तुम्ही बताओ मैं क्या करूँ। मुझे लगता है मेरा होना सच में ही व्यर्थं है। तुम्हीं बताओं मैं कैसे बतलाऊँ उन्हें अपनी महत्ता…??

लेखिका- हे देवी, आप बिलकुल भी परेशान न हो और न ही खुद को कमजोर समझें। हमारे साथ जो हो रहा उसके जिम्मेदार हम ख़ुद ही हैं और हमारा मन ही हमारे साथ हो रहे उचित-अनुचित, सही गलत सबका एकमात्र कारक है। माना आज स्थिति ठीक नहीं है। इस पुरुष प्रधान समाज में आपको पीछे खींचने की कोशिश की जा रही है। आपको कमजोर अबला नाम से सूचित किया जा रहा लेकिन अगर देखा जाए तो ये दुनिया जिसके दम पर चल रही वह आप खुद है। आप नहीं तो इस संसार का आस्तित्व ही ख़त्म हो जाएगा। आपके बिना इस संसार का विकास क्रम ही अवरुद्ध हो जाएगा।

आप की माहिमा तो वेदों और ग्रंथो में की गई है। आपकी शक्ति तो आपके लिए प्रयुक्त नामों से पता लगाई जा सकती है। उदहारण स्वरूप अगर आप महिला शब्द को ही देखें तो
मह + इल च + आ = महिला
अर्थात वह जिसका अर्थ श्रेष्ठ है और जो पूज्य है वही महिला है।

और हे देवी आप तो प्राचीन काल से ही सर्वोपरि है आपके लिए ऋगवेद में मेना शब्द वाचक है और इसकी व्युत्पत्ति भी दी गयी है कहा गया है कि मानयन्ति एना: (पुरुषा:)
अर्थात
पुरुष इनका आदर करते हैं इसलिए इन्हें मेना कहते हैं।
हे देवी आपके ही रूप का बोधक “ग्ना” शब्द जो ऋगवेद मेंं देेेव पत्नियों के लिए प्रयुक्त हुआ है और ब्राह्मण ग्रंथो में जो शब्द मानवी के लिए प्रयुक्त है जिसकी व्याख्या में यास्क लिखता है कि “ग्ना गच्छन्ति एना:।”
अर्थात पुरुष ही उसके पास जाते है और सम्मान पूर्वक बात करते हैं। हे देवी इस प्रकार आपको तो पुरुष से अनुनय की आयश्यकता ही नही पड़ती।

आप क्रियाशील है जिसके कारण ही आप नारी हैं। हे देवी आपकी इच्छाशक्ति बहुत ही प्रबल है और आप शोभावान भी है इसलिए ऋगवेद में सुंदरी शब्द आपके लिए प्रयुक्त हुआ है। आप जागे और खुद को पहचानने की कोशिश करें। प्राचीन काल से ही आपको स्वतंत्र चेतन सत्ता के रुप मे ही स्मरण किया गया है और आपके प्रति सम्मान का भाव उजागर होता है। अतः जो भी आपको भार समझतें हैं वह अज्ञान हैं और आप तो विदूषी हैं और आपको सरस्वती का रूप मानते हुए अथर्ववेद में १४/२/१५ में कहा गया है कि
प्रति तिष्ठ विराडसि विष्णुरिवेह सरस्वति सिनीवाली प्र जायतां भगस्य सुमातावसत्।

अर्थात
हे नारी तुम यहाँ प्रतिष्ठित हो।
तुम तेजस्विनी हो।
हे सरस्वती तुम यहाँ विष्णु के तुल्य प्रतिष्ठित हो।
हे सौभाग्यवती नारी तुम संतान को जन्म देना और सौभाग्य देवता की कृपा दृष्टि में रहना।

और जो भी आपको नकारा समझतेंं हैंं उन्हें यह समझने की जरूरत है कि आप एक होकर भी कई रूप में अपने कर्तव्य का निर्वहन करती हैं। आप से ही परिवार बनता और बिखरता है। आप माँ बन अपने संतान के लिए दुनियां की विशाल शक्ति से भी लड़ने को तैयार रहती हैं आपका प्रेम निस्वार्थ है। आप इस धरा पर भगवान का रूप हैं। कभी बहन तो कभी पत्नी, बेटी आपके हर रूप की महिमा करने के लिए मेरे पास शब्द ही पर्याप्त नहीं हैं। किसी शब्द में वो शक्ति ही नहीं है जो पूर्ण रूप से आपका बखान कर सके।
आपके सम्मान में तो यहाँ तक कहा गया है कि
यत्र नारी पूज्यन्ते
रमन्ते तत्र देवताः
अर्थात जहाँ पर नारी पूज्यनीय होती है वहाँ पर देवता निवास करते हैं।

हे देवी जो आप में और पुरुष में भेद करते हैं जिन्हें घर मे कन्या अवतरित होने पर लगता है कि वह तो एक बोझ है और उसे पढ़ाने लिखाने का कोई मतलब नहीं है क्योंकि वह तो गैर की अमानत है। उनके लिए कुछ भी करना व्यर्थ है। और कुल/वंश बढ़ाने के लिए लड़के जा होना जरूरी समझतें हैं। वह अज्ञान हैं।

वह शायद प्राचीन काल में कही इस बात से अंजान हैं कि :-
“कुलोन्नयने सरसं मनो
यदि विलासकलासु कुतूहलम्।
यदि निसत्वमभीप्सितमकेदा
कुरु सताँ श्रुतशीलवतीं तदा।”

अर्थात :- यदि तुम चाहते हो कि तुम्हारे कुल की उन्नति हो। यदि तुम्हें ललित कलाओं में रुचि है। यदि तुम अपने संतान का कल्याण करना चाहते हो तो अपनी कन्या को विद्या, धर्म, शील से युक्त करो।”
और हम इस बात की नकार नहीं सकते कि यदि आप एक पुरुष को शिक्षित कर रहें हैं तो आप एक परिवार को शिक्षित कर रहें है लेकिन यदि आप एक स्त्री को शिक्षित कर रहें हैं तो आप अपने आने वाली कई पीढ़ियों को शिक्षित कर रहें हैं। इसलिए हे देवी आपका यह सोचना की आप का जीवन व्यर्थ है और आप कमजोर है यह उचित नहीं है। हे देवी तात्विक अभेदता के बावजूद भी व्यवहारिक रूप से अधिक जिम्मेदारी वहन करने के कारण ही मनुस्मृति में मनु ने कहा है कि जहा आपका सम्मान होता है वहीं पर देवता निवास करते हैं।

आज इस युग मे देखें तो मर्दो की लड़ाइयों में भी गलियां माँ बहन को सुननी पड़ती हैं। यही कारण है की इस युग की प्रगति उन्नति की सारी क्रियाएँ निष्फ़ल होती जा रहीं हैं। आप स्वयं ही हमें बताएं कि जब मार्कण्डे पुराण में यह उल्लिखित है कि समस्त स्त्रियाँ और समस्त विधाएँ देवी का रूप हैं।

” विद्या समस्तास्तव देवि भेदाः।
स्त्रियः समस्ता सकलाः जगत्सु।”

तो वह कमज़ोर कैसे ही सकती है। इसलिए हे देवी उठिए खड़े होइए और पुनः इस युग मे वैसा ही सक्षम बनिये, समर्थ बनाइये जैसा कि आपके लिए प्राचीन शास्त्रों में वर्णित है। आप यह मत भूलिए की आप में से ही वक़्त पड़ने पर कोई दुर्गा, काली कोई झांसी की रानी हुई है। अपने आप को कभी कम आंकने की गलती मत करिए। आपके पतन का कारण रहा कि आप चुप चाप अन्याय को सहती रहीं और कभी आवाज़ उठाया ही नहीं इसका एकमात्र कारण क़भी परिवार की इज़्ज़त तो क़भी ये समाज जो अपने हित, फायदे के हिसाब से सभी कायदे क़ानून वक़्त पड़ने पर बदलता रहता है।

आप ख़ुद से अंजान रही क़भी ख़ुद को पहचानने की कोशिश ही नहीं की और उसे स्वीकारती गयी जो दूसरे आपको बतलातें रहें। कभी स्वयं के अंदर झाँक कर ख़ुद के शक़्क्ति और सामर्थ्य को जानने की पहल ही नहीं की। हमेशा अपने हालत के लिए किस्मत को कोसती आई और स्वयं को दोष देती रहीं।
आप ख़ुद दूसरों पर आश्रित होने लगीं। आप शायद यह भूल गयी कि प्यासे को समुंदर के पास ख़ुद चल के जाना पड़ता है। इसलिए अपने हक की लड़ाई, अपने सम्मान की लड़ाई, अपने स्थान की लड़ाई , आपको स्वयं ही लड़नी होगी।

है महान तू,
है विद्वान तू,
है सर्व शक्तिमान तू।
है करुणामयी,
है ममतामयी,
है भगवान का अवतार तू।
है विदुषी,
है गार्गी,
है देवी का स्वरूप तू।

परिचय :- अनन्या राय पराशर
निवासी : संत कबीर नगर (उत्तर प्रदेश)

घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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