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कर भला तो हो भला

डॉ. भोला दत्त जोशी
पुणे (महाराष्ट्र)
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                नुष्य में परोपकार, दया, उदारता, क्षमा, समानता, धैर्य, सृजनशीलता, खोजी दिमाग आदि अनेक सद्गुण हैं जिनकी बदौलत वह ईश्वर की उत्कृष्ट रचना कहलाता है| बीसवीं सदी के उत्तरार्ध की बात है | उत्तराखंड के सुदूर में स्थित चीन की सीमा से लगे तत्कालीन जनपद पिथौरागढ़ जिससे अलग हुआ इलाका अब चंपावत के नाम से जाना जाता है, में एक साधारण किसान परिवार में २० दिसंबर १९५३ को अद्भुत प्रतिभावान बालक का जन्म हुआ था | बालक का नाम भवानी दत्त रखा गया | कहते हैं कि जन्म के ग्यारहवे दिन नामकरण के उपरांत शिशु के हाथों में कलम आदि पकड़वाने की परंपरा के निर्वहन के समय बालक ने कलम और काठी का घोड़ा दोनों को स्पर्श किया | संकेत के रूप में यह माना गया कि बड़ा होकर बालक तकनीकी क्षेत्र में अच्छी पढ़ाई करेगा | बालक के पिता श्री दयाराम जोशी और माता श्रीमती बची देवी बड़े ही सरल स्वभाव के इंसान थे | बच्चे का लालन-पालन सही तरीके से होता रहा | गाँव में पढ़ाई की सुविधा न होने की वजह से उसे नैनीताल जनपद के बीरभट्टी की पाठशाला में प्रवेश दिलाया गया | भवानी दत्त अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी कर चंपावत आ गए जहां रहकर हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी की | उसे इंटर कॉलेज में दाखिला लेने के लिए लोहाघाट जाना पड़ा | इस तरह पढ़ाई के हरेक पड़ाव में उसे कठिनाई का सामना करना पड़ा | कहते हैं कि पाठशाला के कुछ बच्चे गरीबी के कारण कलम, पेंसिल और स्याही का खर्च तक नहीं उठा पाते थे तो भवानी अपनी पाठ्यसामग्री में से अपने मित्रों को पेंसिल, स्याही आदि चीजें दे देते थे | एक बार भवानी अपने सहपाठी के घर गए जहां उसके दादाजी से मुलाक़ात हुई | वे भवानी दत्त की सहयोग भावना के बारे में सुन चुके थे | वह स्वभाव से बड़े ही सज्जन थे | उन्होंने भवानी दत्त के कान में धीरे से कहा था- “कर भला तो हो भला |” यह बात तब भवानी को ज्यादा समझ नहीं आई मगर उसे यह सुनकर सुकून का अनुभव हुआ था | भवानी दत्त की छोटी बहन दुर्गा और भाई हरीश ने भी अपनी पढ़ाई जारी रखी | भाई-बहन घर में उपलब्ध होने पर कामकाज में माता-पिता की मदद करते थे | पिता दयाराम सामान्य खेती कर अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे | परिवार ने कठिन दौर झेला था लेकिन मेहनत करने से किसी ने भी जी चुराना नहीं सीखा |
माना जाता है कि अधिकांश पर्वतीय लोग मेहनतकश, ईमानदार और निष्ठावान होते हैं | सरकार द्वारा उन इलाकों को दसकों तक शहरी सुविधाओं जैसे सड़कें, बिजली, महाविद्यालय और हस्पताल आदि से वंचित रखा तथापि वहाँ की जनता ने अपने सहनशील रवैये को नहीं त्यागा | अतः बहुत वर्षों तक पिथौरागढ़ के उस इलाके में कोई भी डिग्री कॉलेज नहीं था | यही कारण था कि भवानी दत्त को आगे की पढ़ाई के लिए वहाँ से दूसरे जनपद में गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय जाना पड़ा | उनकी इच्छा अभियांत्रिकी में स्नातक की पढ़ाई करने की थी | अतः भवानी दत्त जोशी ने वहाँ से सन १९७६ में सिविल अभियांत्रिकी में बी. टैक. किया | यहाँ गौर करने वाली बात यह है कि वह अपने इलाके के पहले इंजीनियर बने | भवानी दत्त जोशी स्वभाव से अपने माता-पिता की तरह सरल, सकारात्मक, हंसमुख, धैर्यशील, उदार और मेहनती थे | गाँव में रहते वक्त वह घर के हर काम में हाथ बंटाते थे | पढ़ाई की हरेक सीढी उसने अपने कठोर श्रम के दम पर ही पार की थी | पढ़ाई के दौरान अतिरिक्त काम कर जो कुछ धन कमाते थे उसे अन्य मित्रों की पढ़ाई के लिए दे देते थे | भवानी के मन में यह विचार बारंबार आता था कि ‘कर भला तो हो भला|’ वे श्रद्धा भाव से इस वाक्य का चिंतन-मनन करते थे | ऐसा करने से वे अपने अंदर आत्मबल महसूस करते थे |
उनकी पहली नियुक्ति निर्माण निगम, लखनऊ में सहायक अभियंता के पद पर हुई | इंजीनियर भवानी दत्त जोशी सन १९७८ में सुयोग्य कन्या करुणा जोशी के साथ परिणय बंधन में बंध गए | इस स्वर्णिम घटना से मानो उनके भाग्य के द्वार खुल गए | कुछ समय के पश्चात ईश्वर ने इन्हें छाया और देवेश के रूप में दो सन्तानें दी जो सफल और उच्च मानक जीवन जी रहे हैं | इसके बाद हिमाचल लोकसेवा आयोग ने लोक निर्माण विभाग में उन्हें सहायक अभियंता के पद पर नियुक्त कर लिया | भवानी दत्त जोशी ने सन १९८९ में अपनी स्नातकोत्तर पदवी ‘मास्टर ऑफ इंजीनियरिंग’ पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से अच्छे अंको से प्राप्त की | आपने गाँधियन स्टडीज़ पर डिप्लोमा भी किया | समाज के लिए मन में उत्पन्न निर्माणात्मक प्रवृत्ति उनके विचारों को प्रेरित कर रही थी | अब पीछे मुड़कर देखना उनके स्वभाव का हिस्सा नहीं रह गया था | मेहनत और लगन उन्हें ऊंचाई के अवसर देने हेतु आतुर थे | भारत सरकार ने उनकी कार्यशैली देखकर उन्हें सन १९९६ में जार्ज टाउन, दक्षिणी अमेरिका में विश्व बैंक के प्रकल्प पर भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग संगठन के साथ तकनीकी विशेषज्ञ के तौर पर काम करने का स्वर्णिम मौका दिया | देश वापस आने के बाद भारत सरकार ने उन्हें गुणवत्तापूर्ण काम की वजह से सन २००० में राष्ट्रीय महामार्ग प्राधिकरण में तकनीकी विभाग का महाप्रबंधक बना दिया | कई सफल एवं प्रशंसनीय कार्यों के परिणामस्वरूप उन्हें नीति आयोग ने राष्ट्रीय विश्वकर्मा पुरस्कार से सम्मानित किया |
इसके अनंतर इंजीनियर भवानी दत्त जोशी को हिमाचल सरकार ने ‘मुख्य कार्यकारी अभियंता तथा सचिव’ के पद पर नियुक्त किया | निष्ठा से किए गए उनके कार्य एवं ईमानदारी की ख्याति पूरे हिमाचल प्रदेश में ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण देश में फैल रही थी | इसके बाद हिमाचल लोकनिर्माण विभाग में २००८ से २०११ मध्य मुख्य अभियंता के पद पर रहे | ज्ञातव्य है कि एक बार प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने उन्हें लखनऊ के एक विशेष प्रकल्प के मार्गदर्शन हेतु दिल्ली बुलाया था | काम में कभी न थकने वाले इंजीनियर भवानी दत्त जोशी यद्यपि औपचारिक रूप से २०११ में सेवानिवृत्त हो गए थे किन्तु उनकी योग्यता का लाभ लेते हुए सरकार ने उन्हें राष्ट्रीय महामार्गों से जुड़े कामों में आने वाले विवादों के निपटान हेतु आर्बिटेटर नियुक्त किया | देश को दी गई विशिष्ट सेवा के लिए उन्हें हिन्दी विद्यापीठ ने विद्यावाचस्पति की उपाधि से नवाजा है | डॉ. भवानी दत्त जोशी ने बिना किसी भेदभाव के आजीवन सबकी मदद की | उनके पास जब भी कोई सहायता मांगने के लिए आता था तो योग्य सलाह देकर उसे आगे बढ़ने का रास्ता बताते थे | उनके द्वारा प्रेरित कई लोग पढ़ाई कर देश-विदेश में उच्च पदों पर काम कर रहे हैं इसलिए इंजीनियर भवानी दत्त जोशी हजारों लोगों के लिए आदर्श व्यक्तित्व बन गए हैं |

निष्कर्ष- इस कहानी में ‘कर भला तो हो भला‘ वाली कहावत अपनी यथार्थता को साबित कर चुकी है | दूसरों की अच्छाई में अपना कल्याण ढूँढने वाले लोग भले ही बिरले होते हों तथापि वे राष्ट्रहित में अंतिम समय तक जुटे रहते हैं |

परिचय :-  डॉ. भोला दत्त जोशी
निवासी : पुणे (महाराष्ट्र)
शिक्षा : डी. लिट. (केंद्रीय मध्य अमेरिकी विश्वविद्यालय, बोलिविया)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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