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कृपया प्रतीक्षा करे, आप कतार में हैं….???

प्रो. डॉ. दीपमाला गुप्ता
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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आज सुबह जब किसी के स्टेट्स पर ये लाइन पढ़ी, पहले तो थोड़ी हँसी आई, फिर एकदम हँसी और मन दोनों सहम गए। हम हर रोज मन को सकारात्मक सोचने और खुद को खुश रखने की कोशिश करते हैं।
रोज सुबह एक प्रेरणा, प्रार्थना, उत्साह, जोश, जुनून, सकारात्मकता, खुशी, भविष्य की तैयारी की एक पोटली बनाकर दिन की शुरूआत करते है, और चाहे अनचाहे ऐसी खबरों और मौत की खबरों को सुनना पड़ता हैं, हम सुनना भी नही चाहते है, और हमारी तैयार खुशियों की पोटली में प्रेरणा, प्रार्थना, उत्साह, जोश, जुनून, सकारात्मकता, खुशी, भविष्य की सोच, एक मिनट में डर, परिवर्तित होकर इन सब सकरात्मक शब्दो और भावो को कोने में बिठा देते है, और हम महामारी के संकट की सोच को दिमाग से बाहर ही नही निकाल पाते।
अब समय हैं, अपने परिवार को समय देने का, वर्चुअल दुनिया से बाहर आने का और वास्तविक दुनिया में रहने का, ताकि हम खुश रह सके, हमे खुश रहने की कोशिश न करना पड़े। विडम्बना देखिए वर्चुअल दुनिया से दूर रहने की सलाह भी इसी वर्चुअल माध्यम से देनी पड़ रही है।
वास्तविक खुशी के लिए हमको खुद को बदलना होगा कही ऐसा न हो की निराशा और उदासीनता हमारा स्थाई भाव बन जाये। अब तो लगता है अब क्या किसी के मरने की खबर सुनने के बाद भी हम जीने का उत्साह बरकरार रख पाएंगे। अब जीने की ललक और उत्साह को बनाये रखने के लिए खुद को ऐसे आध्यत्मिक मोड पर रखना होगा, जहाँ सब कुछ सकारात्मक होगा ।
अब दुनिया इसे महाप्रलय के परिदृश्य के रूप में देख रही है, भूकंप, भूस्खलन, कोरोना, काली फफूंद, इंसान एक जगह से बचे तो दूसरी जगह घिर जाए, आखिर बच के कहा जाए। घर पर भी वो डरा हुआ ही हैं।
अब तो लगता है भगवान अपने झोले में सबके नाम की पर्ची लेकर बैठा है, और किसी को अकेला और किसी को परिवार सहित बुला रहा है। और बिना नाम और कर्म देखे ही पर्ची उठा रहा है।
अब जाए भी तो जाए कहाँ? जाने के लिए भगवान ने अपने पट भी बंद कर रखे हैं।
अब तो बस ज़िंदगी को आगे बढ़ाते जाइये और यही सोचिए।
ज़िंदगी एक सफर है सुहाना
यहाँ कल क्या हो किसने जाना……????

परिचय : प्रो.डॉ. दीपमाला गुप्ता
प्रधान सम्पादक (हिन्दी रक्षक डॉट कॉम)
निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश
सम्प्रति : विभागाध्यक्ष पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग रेनेसा यूनिवर्सिटी इंदौर


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