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‘है’ और ‘था’ में अंतर

विजय गुप्ता
दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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देश कभी सोनचिरैया था, अब दुष्कर हाल हुआ है
कल था साथ सभी के, आज नज़रों से दूर हुआ है

रूह कांपती है देखदेख, कैसा बना है शेष सफर
अकाल खोते देख स्वजन, जज़्बे बन गए सिफर

कसूर नहीं लेशमात्र भी, कोरोना कातिल हुआ है
कल था साथ सभी के, आज नज़रों से दूर हुआ है

देश कभी सोनचिरैया था, अब दुष्कर हाल हुआ है

बेढब चाल लापरवाही हद, खून में रचा बसा था
लाख समझाइश पर भी, भूलों का नशा चढ़ा था

कालाबाज़ारी चोरी भी, नकली दवा चलन हुआ है
कल था साथ सभी के, आज नज़रों से दूर हुआ है

देश कभी सोनचिरैया था, अब दुष्कर हाल हुआ है

कवि ‘प्रदीप’ भजन दर्द, मुसीबतों से देश लड़ा था
बात घात से देखा पतन, पर नमन वतन को था

वतन सौदागरों से भारत, संकटों से घिरा हुआ है
कल था साथ सभी के, आज नज़रों से दूर हुआ है

देश कभी सोनचिरैया था, अब दुष्कर हाल हुआ है

खैरियत हैसियत बीच, नज़रियों का कटु गिला है
संकट में साथ छूटे, हाथ थामना भी नहीं भला है

खून खराबा जुलूस रैली, कई ढंगों से दगा हुआ है
कल था साथ सभी के, आज नज़रों से दूर हुआ है

देश कभी सोनचिरैया था, अब दुष्कर हाल हुआ है

आंगन गलियारे मुहल्ले, शोक लहर से व्याप्त है
कहीं अस्पताल कर्मचारी, बल्ले बल्ले में मस्त है

अच्छा देखना सुनना, कर्मयोद्धा से नसीब हुआ है
कल था साथ सभी के, आज नजरों से दूर हुआ है

देश कभी सोनचिरैया था, अब दुष्कर हाल हुआ है

घर दहलीज पे मेहमान, शान से आया करता था
बहुत तमीज से घर का, हाल छिपाया करता था

घर ही रहना मत आओ, अनचाहा संदर्भ हुआ है
कल था साथ सभी के, आज नजरोंसे दूर हुआ है

देश कभी सोनचिरैया था, अब दुष्कर हाल हुआ है

नशा धर्म जाति सियासत, अंतहीन सा मंजर है
घर की छत छांव दोनों, मनहूस बनी वो बंजर है

सदी की कोविड रोग मानो, शर्तिया खेला हुआ है
कल था साथ सभी के, आज नज़रों से दूर हुआ है

देश कभी सोनचिरैया था, अब दुष्कर हाल हुआ है

हंसता खेलता परिवार, कुलीन बच्चे कहीं बाप था
मंहगे की आंधी चली, सस्ता इलाज तो भाप था

दूरी व मास्क से रिश्ता, जीवनरक्षक बना हुआ है
कल था साथ सभी के, आज नज़रों से दूर हुआ है

देश कभी सोनचिरैया था, अब दुष्कर हाल हुआ है

बिना मास्क जुर्माना दे देंगे, लेकिन खौफ नहीं है
पोलिस से भी लड़ जाएंगे, जीवन से मोह नहीं है

तकनीकी ज्ञान सटीक, करतूतों से बेहाल हुआ है
कल था साथ सभी के, आज नज़रों से दूर हुआ है

देश कभी सोनचिरैया था, अब दुष्कर हाल हुआ है

शहर का माहौल देखे, परिवार का ध्यान नहीं था
महामारी प्रलय तांडव, भीड़ का हिसाब नहीं था

हृदय विदारक संदेशों से, दिल पत्थर सा हुआ है
कल था साथ सभी के, आज नज़रों से दूर हुआ है

देश कभी सोनचिरैया था,अब दुष्कर हाल हुआ है

सलमा तड़पे रोए सीता, याद है कुरान और गीता
कुशलक्षेम बातों से जब, घर कभी नहीं था रीता

दूरी भी निकट लगती, अब निकटतम दूर हुआ है
कल था साथ सभी के, आज नजरों से दूर हुआ है

देश कभी सोनचिरैया था, अब दुष्कर हाल हुआ है

विनम्र सहयोग भाव मित्र का, सेवारथी जीव था
साइबर अपराध रोकने, कंप्यूटर ज्ञान सजीव था

प्रशंसापात्र था लाडला, ‘क्षितिज’ के पार हुआ है
कल था साथ सभी के, आज नजरों से दूर हुआ है

देश कभी सोनचिरैया था, अब दुष्कर हाल हुआ है

ॐ शांति में सिमटा देश, चाहत थे कुछ सपनों के
मजबूरी की चरम सीमा, आहत हुए उन अपनों से

हर कोई सोचे जग में, किससे कैसा पाप हुआ है
कल था साथ सभी के, आज नज़रों से दूर हुआ है

देश कभी सोनचिरैया था, अब दुष्कर हाल हुआ है

भूत वर्तमान के मध्य देखो,कितना महीन नाता है

पल में ‘है’ था में अंतर, दिल आहें भर रह जाता है
परिवार संभालना दुर्लभ, दुख अपार भरा हुआ है

कल था साथ सभी के, आज नजरों से दूर हुआ है
देश कभी सोनचिरैया था, अब दुष्कर हाल हुआ है

परिचय :- विजय कुमार गुप्ता
जन्म : १२ मई १९५६
निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़

उद्योगपति :१९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग
साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा प्रशंसा पत्र
काव्य संग्रह प्रकाशन : १ करवट लेता समय २०१६ में, २ वक़्त दरकता है २०१८
राष्ट्रीय प्रशिक्षक : (व्यक्तित्व विकास) अंतराष्ट्रीय जेसीस १९९६ से
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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