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अनदेखी

संजय वर्मा “दॄष्टि”
मनावर (धार)
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तरसती आँखें
और आस
रिश्तों को पाने के लिए
तलाशता मन।

बिखर गए
मोतियों से रिश्ते को
फिर से पिरोने की
चाह
कापते हाथ
उठ नहीं पाते
देने आशीर्वाद
कमजोर देह।

किस्से ताजे
बुजुर्गी तिरस्कार के
पिंजरे में दुबकी उम्र
खाना पिंजरे में
पक्षी का दाना देते जैसे।

कैद पक्षी से
भला कौन ज्यादा
बातें करता
अकेलापन बहुत बुरा होता
कलयुग में श्रवणकुमार
भला कहा मिलेंगे।

भौतिकता की चकाचौंध
रिश्तों को निगलती
सोच अपने अपने
भाग्य की
बूढ़े रिश्तों का
भाग्य से क्या काम।

दकियानूसी सोच
मस्तिष्क -दिल को
कर देती छोटा
रिश्ते की राहें
हो चली गुमराह।

किंतु बुजुर्गी
दरवाजे पर दस्तक
को आज भी पहचानती
बुजुर्गो की अनदेखी
बहुत दूर बसे रिश्ते बरसों बाद
दरवाजा थपथपा कर
अपनों से दूर रह रहे
दूर बसे दुबके रिश्तों को
याद आने पर
अब देने लगे दस्तक।

परिचय :- संजय वर्मा “दॄष्टि”
पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा
जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन)

शिक्षा :- आय टी आय
व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग)
प्रकाशन :- देश – विदेश की विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति “दरवाजे पर दस्तक”, खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा -अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान – २०१५, अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित
संस्थाओं से सम्बद्धता :- शब्दप्रवाह उज्जैन, यशधारा – धार, मगसम दिल्ली,
काव्य पाठ :- काव्य मंच/आकाशवाणी/ पर काव्य पाठ, शगुन काव्य मंच
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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