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सकारात्मक सोच

रुचिता नीमा
इंदौर म.प्र.
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शहर में चारों तरफ महामारी आतंक मचा रही थी, हर कोई दशहत में था कि मुझे कुछ हो न जाये। लेकिन इन सबसे परे कोई और भी था जो सुनहरे भविष्य के लिये सपने बुन रहा था, राज….
एक बहुत अच्छा और सवेंदनशील लड़का, जिसको बहुत कुछ हासिल करना था। लेकिन लॉक डाउन के चलते वह खुद को बहुत असहज महसूस कर रहा था।
उसे लगता था कि जिंदगी की रफ्तार रुक सी गई है। और लोग हताश रहने लगे हैं। और मैं इन लोगों के लिये चाहकर भी कुछ नही कर पा रहा।
अचानक सोशल मीडिया पर उसकी मुलाकात उसकी एक बहुत पुरानी दोस्त से हुई, जो कि डॉक्टर थी और दिन रात मरीजों के इलाज में लगी हुई थी, फिर भी वह तनाव मुक्त थी,,, उससे बात करके राज को महसूस हुआ कि जीवन में खुद से ज्यादा जरूरी कुछ नहीं। खुद का मनोबल बनाये रखना बहुत जरूरी है।
धीरे-धीरे उसने खुद में सकारात्मक बदलाव किया और अपने परिवार और दोस्तो को भी इस महामारी के भय से मुक्त करना शुरू किया।उनको बचने के उपाय बताने लगा। परिणाम बहुत सकारात्मक आए, लोग अब डर नही रहे थे, अपितु सावधान थे। धीरे-धीरे उनके आसपास मरीज कम होने लगे और लोग अपने को सहज महसूस करने लगे। अब उनके शहर में कोरोना का कोई भय न था। सभी लोग पर्याप्त दूरी और मास्क का प्रयोग करने लगे थे।
सिर्फ राज की सकारात्मक सोच ने पूरे शहर का माहौल बदल दिया था…।

परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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