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वृक्ष और बेटी

पारस परिहार
मेडक कल्ला
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तुम फलते हो मैं खिलती हूँ,
तुम कटते हो मैं मिटती हूँ;
तुम उनके स्वार्थ की खातिर,
मैं उनके सपनों की खातिर।

मैं बनकर माँ बेटी पत्नी
लुटती और लूटाती अपनी
ख्वाहिशों की मंजिल ढहाकर
उनका घर आँगन सजाकर।

तुम चहकाती आँगन उनका
मैं भर देता दामन उनका,
फिर क्यों तुम मारी जाती हो
क्यों फिर मै काटा जाता हूँ।

मैं देता हूँ शीतल छाया
फिर भी जलती मेरी काया,
तुम उनका हो वंश बढाती
क्यों गर्भ में मारी जाती।

हे!मगरुर मनुज तु रखना
याद हमारी बातों को,
दरक़ जाएंगे जब हम तेरी
ढह जाएगी ऊँची मंजिल।
क्योंकि हम है नींव तुम्हारे
सपनों की कंगुरों की।

हम लुटाते रहे अपना सर्वस्व,
वो मिटाते रहे हमारा अस्तित्व।

परिचय :- पारस परिहार
निवासी : मेडक कल्ला
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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