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हाँ मै मजदूर हूँ…

रीमा ठाकुर
झाबुआ (मध्यप्रदेश)
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मै मजदूर हूँ, हाँ मै मजदूर हूँ’
लडता हूँ खुद से डटां रहता हूँ,
भरी दुपहरी मे, कोई भी मौसम हो,
सह लेता हूँ खुद पर, क्योंकि मै मजदूर हूँ!

तोड देती है, मुझे सत्ता की लड़ाई,
टूट जाता हूँ, जब इस्तेमाल होता हूँ,
मै बेबस, मजबूर हूँ, जी हाँ मै मजदूर हूँ!
झेल लेता हूँ सिकन, पसीने की बूदें,
सिर पर भारी जबाबदारी की गठरी.
बदलती है, सत्ता की शर्तें,
पर मै बदलता नहीं, मै मजदूर हूँ हां मै मजदूर हूँ!

खुश होता हूँ, जब कमाता हूँ चंद सिक्के,
रोटियाँ नजर आती है उन सिक्को मे,
बच्चे तकते है रास्ता मेरा,
उनके लिए भरपूर हूँ, जी हाँ मै मजदूर हूँ!

हाथ कंगन को अरसी क्या, खूबियो मे
बेमिसाल हूँ, मै. बोझ ढोता हूँ जमाने के,
पर खुद के लिए लाचार हूँ मै,
रोज बनाता हूँ सपनो के पूल
‘जिस पर गुजरता हूँ हर शाम हूँ मै,
कैसे बताऊँ अबिराम हूँ बस खुद का जी लेता हूँ,
खुद मै थोड़ा, मगरूर हूँ मै जी हाँ
मजदूर हूँ मैं, हाँ मजदूर हूँ मै ….!!

परिचय :- रीमा महेंद्र सिंह ठाकुर
निवासी : झाबुआ (मध्यप्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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