अमिता मराठे
इंदौर (म.प्र.)
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सत्य है कि ईश्वर का दिया यह जीवन हर व्यक्ति के लिए किसी आशीर्वाद से कम नहीं। यह एक सुंदर उपहार है। इसे स्वीकार करते हुए बस अपने दम पर जिंदगी को सुकूनभरा बनाते जाएं यह प्रयास हमें ही करना होंगे। इसलिए हमेशा जिंदगी का धन्यवाद करें और उसने जो दिया है उसी में प्रसन्न रहना ही उचित होगा।
जीवन अविरल और अविनाशी यात्रा हैं। सृष्टि चक्र के साथ मानव प्राणी भी अपने कर्मों मुताबिक पार्ट करने हेतु साकार शरीर धारण करता है।यह गतिशील चक्र ठीक पांच हजार वर्षों का है। जिसमें मनुष्य प्राणी सिर्फ ८४ जन्म कम या पूरे लेता है। अतः मनुष्य का हर जन्म महत्वपूर्ण हैं। जन्म मृत्यु का चक्र जो समझ लेता है वह अपने भविष्य को सार्थक बनाने में जुट जाता है। ८४ लाख योनी का कोई हिसाब नहीं होता है।यह जीवन रहस्य जो समझे वह प्रति सेकंड का सदुपयोग करता है। वह ईश्वर के प्रति हर जन्म में आभारी रहता है।
“कहा जाता हैं मनुष्य जीवन बड़ा दुर्लभ है” जब चारों युगों के पश्चात पुनः सतयुग का प्रारम्भ होता है उस समय नई दुनिया की स्थापना स्वयं भगवान करते हैं। इस समय जो ज्ञान अर्जित करता हैं वह जन्म दुर्लभ हैं। सब उसे समझ नहीं पाते।जिन्दगी फिर मिले अथवा नहीं इस प्रश्न पर सोचना व्यर्थ है, क्योंकि कर्मों का हिसाब किताब चुकाने के लिए मानव शरीर ही लेना पड़ेगा। जिसके माध्यम से हम सुख दुःख प्राप्त करते हैं, वह है हमारे कर्म, कर्मगति की पहचान हमें जिन्दगी की वास्तविकता की समीप पहुंचा देती है। अतः जीवन की सार्थकता पर अवश्य विचार करना चाहिए। इस धरती पर हम क्यों आयें है? इसकि अनुभूति प्रतिपल होना चाहिए।
अस्पताल में कोरोना संक्रमित ८५ वर्षीय बुजुर्ग का इलाज चल रहा था। उसी समय एक महिला अपने ४० वर्षीय पति को भर्ती कराने आती हैं। अस्पताल संचालकों ने बिस्तर खाली नहीं कहते उसे मना किया। वह महिला जोर-जोर से रोने लगी। बुजुर्ग देख रहें थे उन्होंने डॉक्टर से कहा मैंने मेरी जिंदगी गुजार ली है। आप इस युवा को मेरा बिस्तर दे दीजिए। कहते उसने प्रार्थना पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए और घर आ गये। तीसरे दिन उनकी जीवन लीला समाप्त हो गई। इस वृत्ति के बीज इंसान बचपन से बोता है। अन्त में उस बुजुर्ग का दुआओं का खाता भरपूर हो गया जो उसकी सत्य पुंजी थी। जिसे वह साथ ले गये।
यह एक सत्य मिसाल है लेकिन सदा सोचना है हमें दूसरा जन्म भी सफल करना है तो क्या करें जिससे वर्तमान और भविष्य सुखमय हो जाये।
१ 👉 धन्यवाद और शुक्रिया शब्द का उपयोग शालीनता की निशानी है। यह महज औपचारिकता नहीं इसके साथ कृतज्ञता की पवित्र और कोमल भावना भी जुड़ी हैं ।
२ 👉 किसी इंसान को लंबे संघर्ष बाद कामयाबी मिली हो या वह मेहनत से सफर तय कर रहा हो तो उसका उदारता पूर्वक हौसला बढ़ाना। क्योंकि जिन्दगी में सभी एक-दूसरे के मददगार होते हैं।
३ 👉 दिनचर्या में शुभ भावना देना और लेना रिश्तों को मजबूत बनाते हैं। यह नम्रता तथा सौम्यता का प्रतीक हैं। इससे हमारी आत्मविश्वास की शक्ति बढ़ती है।
४ 👉 जिन्दगी के मुश्किल हालात में भाग्य को कोसने के बजाय उससे उबरने की कोशिश ही कामयाबी की सीढ़ी चढ़ने में हिम्मत देती है। बशर्ते यह याद रहें कि हर जिंदगी में धूप छांव तो देखने की तैयारी में रहना हैं।
५ 👉 परोपकार की भावना, सत्कर्मों का जज्बा, सच्चाई, सफाई, सादगी, निमित्त भाव, निर्मान, निर्माण भाव इन श्रेष्ठ गुणों से युक्त हो कर्म करेंगे तो जिन्दगी दुबारा आनी ही है। जिससे हम अपने दिव्य जीवन का आनंद ले सकें।
परिचय :- अमिता मराठे
निवासी : इन्दौर, मध्यप्रदेश
शिक्षण : प्रशिक्षण
एम.ए. एल. एल. बी.,
पी जी डिप्लोमा इन वेल्यू एजुकेशन, अनेक प्रशिक्षण जो दिव्यांग क्षेत्र के लिए आवश्यक है।
वर्तमान में मूक बधिर संगठन द्वारा संचालित आई.डी. बी.ए. की मानद सचिव।
४५ वर्ष पहले मूक बधिर महिलाओं व अन्य महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए आकांक्षा व्यवसाय केंद्र की स्थापना की। आपका एकमात्र यही ध्येय था कि महिलाओं को सशक्त बनाया जा सके। अब तक आपके इंस्टिट्यूट से हजारों महिलाएं सशक्त हो चुकी हैं और खुद का व्यवसाय कर रही हैं।
शपथ : मैं आगे भी आना महिला शक्ति के लिए कार्य करती रहूंगी।
प्रकाशन :
१ जीवन मूल्यों के प्रेरक प्रसंग
२ नई दिशा
३ मनोगत लघुकथा संग्रह अन्य पत्र पत्रिकाओं एवं पुस्तकों में कहानी, लघुकथा, संस्मरण, निबंध, आलेख कविताएं प्रकाशित राष्ट्रीय साहित्यिक संस्था जलधारा में सक्रिय।
सम्मान :
* मानव कल्याण सम्मान, नई दिल्ली
* मालव शिक्षा समिति की ओर से सम्मानित
* श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान
* मध्यप्रदेश बधिर महिला संघ की ओर से सम्मानित
* लेखन के क्षेत्र में अनेक सम्मान पत्र
* साहित्यकारों की श्रेणी में सम्मानित आदि
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