बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
तिनसुकिया (असम)
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सोरठा छंद
मंजुल मुद आनंद, राम-चरित कलि अघ हरण।
भव अधिताप निकंद, मोह निशा रवि सम दलन।।
हरें जगत-संताप, नमो भक्त-वत्सल प्रभो।
भव-वारिध के आप, मंदर सम नगराज हैं।।
शिला और पाषाण, राम नाम से तैरते।
जग से हो कल्याण, जपे नाम रघुनाथ का।।
जग में है अनमोल, विमल कीर्ति प्रभु राम की।
इसका कछु नहिं तोल, सुमिरन कर नर तुम सदा।।
हृदय बसाऊँ राम, चरण कमल सिर नाय के।
सभी बनाओ काम, तुम बिन दूजा कौन है।।
गले लगा वनवास, बनना चाहो राम तो।
मत हो कभी उदास, धीर वीर बन के रहो।।
रखो राम पे आस, हो अधीर मन जब कभी।
प्राणी तेरे पास, कष्ट कभी फटके नहीं।।
सुध लेवो रघुबीर, दर्शन के प्यासे नयन।
कबसे हृदय अधीर, अब तो प्यास मिटाइये।।
सोरठा “विधान”
दोहा की तरह सोरठा भी अर्ध सम मात्रिक छंद है। इसमें भी चार चरण होते हैं। प्रथम व तृतीय चरण विषम तथा द्वितीय व चतुर्थ चरण सम कहे जाते हैं। सोरठा में दोहा की तरह दो पंक्तियाँ होती हैं और प्रत्येक पंक्ति में २४ मात्राएँ होती हैं। सोरठा और दोहा के विधान में कोई अंतर नहीं है केवल चरण पलट जाते हैं। दोहा के सम चरण सोरठा में विषम बन जाते हैं और दोहा के विषम चरण सोरठा के सम। तुकांतता भी वही रहती है। यानि सोरठा में विषम चरण में तुकांतता निभाई जाती है जबकि पंक्ति के अंत के सम चरण अतुकांत रहते हैं।
दोहा और सोरठा में मुख्य अंतर गति तथा यति में है। दोहा में १३-११ पर यति होती है जबकि सोरठा में ११-१३ पर यति होती है। यति में अंतर के कारण गति में भी भिन्नता रहती है।
मात्रा बाँट प्रति पंक्ति
८+२+१, ८+२+१+२
परहित कर विषपान, महादेव जग के बने।
सुर नर मुनि गा गान, चरण वंदना नित करें।।
जन्म दिनांक : २८ अगस्त १९५२
निवास स्थान : तिनसुकिया (असम)
रुचि : काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि। हिंदी साहित्य की पारंपरिक छंदों में विशेष रुचि है और मात्रिक एवं वार्णिक लगभग सभी प्रचलित छंदों में काव्य सृजन में सतत संलग्न हूँ।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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