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एक उम्मीद

रुचिता नीमा
इंदौर म.प्र.
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हर तरह प्राणवायु बिखरी है,
फिर भी चारों तरफ शोर है।।
हम ही काबिल न बचे अब लेने को,
हमारे ही फेफड़े अब कमजोर है।।

अभी भी वक़्त है सम्हलने का,
खुद को ऊर्जा से भरने का।।
थोड़ा आसन थोड़ा प्राणायाम
और थोड़ा वक्त प्रकृति को देने का।।

चलो फिर से पेड़ लगाए,
अपनी प्राणवायु स्वयं बनाये।।
खुद को फिर मजबूत बनाये
अपने को और अपनों को बचाये।।

ये वक़्त ही तो है गुजर जाएगा,
फिर एक नया सवेरा आएगा।।
हम आशाओं के नवदीप जलाए,
और दुनिया को फिर से जगमगाये।।

माना जो हो रहा है,
वो बहुत दर्द दे जाएगा।।
मगर हिम्मत रख ले दोस्त,
बहुत जल्द ही सब ठीक हो जाएगा।।

परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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