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संजीवनी बूटी कहा ढुढोगें

गगन खरे क्षितिज
कोदरिया मंहू (मध्य प्रदेश)
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तबाह कर दिये जंगल पठार,
पर्वत, बची थी खेती जमीन
उस पर भी बना लिए
पत्थर के जंगल
मानवता इंसानियत भी
खत्म होती जा रही है,
बतलाऔ कहा ढुढोगें
अब संजीवनी बूटी
और मर रहा है आदमी।

हां हां कर मचा विश्व में
कृत्रिम आक्सीजन के लिए
इस लॉकडाउन महामारी में,
उजाड़कर सृष्टि को जो खूबसूरत है,
कभी तुमसे कुछ नहीं मांगा
बल्कि दिया हमेशा
अतुलनीय अनमौल उपहार,
आज आदमी बन गया है,
आदमी का दुश्मन
और मर रहा है आदमी।

शैतानी दिमाग पाया है,
ईश्वर में भी
आस्था कम हो गई है,
कुछ अविष्कार क्या कर लिया,
ईश्वर को झुठलाने लगा है
गगन और तो और
अपनी गलती छुपाने के लिए
कलयुगी दुहाई देकर
बच जाना चाहता है,
देख नहीं रहा
अपनी गलती
आज मर रहा है आदमी।

परिचय :- गगन खरे क्षितिज
निवासी : कोदरिया मंहू इन्दौर मध्य प्रदेश
उम्र : ६६वर्ष
शिक्षा : हायर सेकंडरी मध्य प्रदेश आर्ट से
सम्प्रति : नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण भोपाल मध्यप्रदेश सेवानिवृत्त २०१४
साहित्य में कदम : २०१४ से भारतीय साहित्य परिषद मंहू, मध्य प्रदेश लेखक संघ मंहू इकाई, महफ़िल ए साहित्य कोदरिया मंहू, आर्चना साहित्य संस्थान मंहू, राष्ट्रीय संखी साहित्य परिवार, छत्तीसगढ़ सखी साहित्य परिवार, म. प्र. संखी साहित्य परिवार, राष्ट्रिय हिंदी रक्षक मंच आदि समूह से समय पर जुड़े है।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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