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किताबें

प्रीति जैन
इंदौर (मध्यप्रदेश)

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मेरे वीरानेपन की है साथी
नाता अनुपम जैसे दीया और बाती
मन में हो चाहे असंख्य द्वंद्व
पुस्तके ह्रदय की पीड़ा को बहलाती

मेरे एकांत की विलक्षण साथी
सखी मेरी, संगत ना किसी की भाती
मेरे सुख-दुख में मुझे गुदगुदाती
पल में आंखों से आंसू छीन ले जाती

घर बैठे पुस्तक दुनिया की सैर कराती
इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र से ज्ञान बढ़ाती
वेद, महापुराणों की गाथा पुस्तक गाती
बालसंस्कार, नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाती

तुम गुरु जगत की, भावों का स्पंदन
विविध चरित्र का हो तुम अमिट दर्पण
मनुष्य के हर वर्ग का, पठन से खिल उठता चितवन
पुस्तक में सिमटा अद्भुत ज्ञान का व्यंजन

पुस्तक मनुष्य से देवता तक का सेतु
इतिहास रचती पुस्तके मानवता हेतु
बन आत्मबोधी बाह्यजगत से कर किनारा
अलौकिक शक्ति जगा, ले पुस्तक का सहारा

शिथिल जीवन में, उत्साह की आस
मित्र घनिष्ठ और अंतर्मन से पास
पुस्तक के सानिध्य में बनकर ज्ञानी
अंधियारे जग में कर उजाला अज्ञानी

जीवन को मूल्यवान बना, किताबों की संगत
फीकी इनके आगे हीरे मोती की रंगत
अमूल्य विचारों को मन में गढ़कर
बदलो राहे मन की, इतिहास रच कर

परिचय :- प्रीति धीरज जैन
निवासी : इंदौर (मध्यप्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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