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गुलाब हो या दिल

संजय जैन
मुंबई (महाराष्ट्र)
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गुलाब हो या मेरा या
उसका तुम हो दिल।
तुम ही बतला दो अब
ये खिलते गुलाब जी।।

दिल में अंकुरित हो तुम।
इसलिए दिल की डालियों,
पर खिलाते हो तुम।
गुलाब की पंखड़ियों कि,
तरह खुलते हो तुम।
कोई दूसरा छू न ले, इसलिए
कांटो के बीच रहते हो तुम।
पर प्यार का भंवरा कांटों,
के बीच आकर छू जाता है।
जिसके कारण तेरा रूप,
और भी निखार आता है।।

माना कि शुरू में कांटो से,
तकलीफ होती हैं।
जब भी छूने की कौशिश,
करो तो चुभ जाते हो।
और दर्द हमें दे जाते हो।
पर तुम्हें पाने की,
जिद को बड़ा देते हो।
और अपने दिल के करीब,
हमें ले आते हो।।

देखकर गुलाब और,
उसका खिला रूप।
दिल में बेचैनियां बड़ा देता हैं
और मुझे पास ले आता है।
और रातके सपनो से निकालकर।
सुबह सबसे पहले,
अपने पास बुलाता है।
और अपना हंसता खिल
खिलाता रूप दिखता है।।

मोहब्बत का एहसास,
कराता है गुलाब।
महफिलों की शान,
बढ़ाता है गुलाब।
शुभ-अशुभ में भी,
भूमिका निभाता है गुलाब।
तभी तो फूल दिन भी,
मनवाता है गुलाब।
इसलिए तो दिलोंजान से,
चहाते हैं हम गुलाब।।

परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं। ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी के चलते कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। आप मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखने के साथ-साथ मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है, आप लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।
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