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नल दमयंती चालीसा

डाॅ. दशरथ मसानिया
आगर  मालवा म.प्र.
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युधिष्ठिर के दुख देख के, वृहदश मुनि समझाय।
नल दमयंती कथा कहि, सुन पांडव हरषाय।।

वीर सेन थे निषद नरेशा।
सुंदर पूत भये नल एका।।१

वीर उदार पराक्रम भारी।
एक बुराई कभी जुआरी।।२

एक दिना की सुनो कहानी।
उपवन में नल घूमन आनी।।३

सुंदर जोड़ा हंसन देखा।
चितवन चंचल रूप विशेषा।।४

दमयंती की करी बड़ाई।
सुनके नल मन में हरषाई।।५

भीम नाम कुंडनपुर भूपा।
जिनकी कन्या सुंदर रूपा।।६

दमयंती बेटी है नामी।
सुघर सलोनी जगत बखानी।।७

सुता स्वयंवर भीम रचाये।
राजा मानव देव बुलाये।।८

वरुण इन्द्र अग्नि यम आये।
चारों ने नल रूप बनाये।।९

जब कन्या ने नल नहिं जाना।
देवों से की विनती नाना।।१०

प्रसन्न हो दो दो वर दीना।
फिर कन्या ने नल वर लीना।।११

इंद्रसेन सुत सुता कहाये।
रानी दम ने गर्भन जाये।।१२

खुशी खुशी कछु समय बिताई।
नर नारी सब भये सुखाई।।१३

काल समय ने पलटा खाया।
कलियुग नल के तन में आया।१४

बुद्धि बिगाड़ी धरम भुलाया।
जुआ खेल मे तुरत हराया।।१५

जब दुखदारुण जग विपरीता।
भाई पुष्कर सब कछु जीता।।१६

बच्चे तो ननिहाल पठाये।
छोड़ सारथी वापस आये।।१७

राजा रानी वन को धाये।
तीन दिना भोजन नहि पाये।।१८

कंद मूल का करें अहारा।
जीवन हीन भया संसारा।।१९

वन सोने का पंछी देखी।
लोभ पायके धोती फेंकी।।२०

एक वसन में दोनो प्राणी।
ऐसी विपदा कभी न आनी।।२१

साड़ी फाड़ दो टूक बनाये।
एक एक दोनो पहराये।।२२

फिर भाग्य ने पलटा खाये।
अलग अलग दोनों भटकाये।।२३

जलत सांप राजा ने पाया।
उठा हाथ में उसे बचाया।।२४

बदला रूप अवध में आये।
राज सारथी परण बनाये।।२५

इत जंगल रानी घबराई।
पाय अकेली बहुत डराई।।२६

अजगर खीचे मुख में सोई।
जोर जोर से रानी रोई।।२७

सुनके चीख शिकारी आया।
फाड़ मुखोटा उसे बचाया।।२८

देखा रूप व्याध ललचाया।
रानी उसको मार गिराया।।२९

फिर निर्जन वन कीन पयाना।
पूछत नल का पता ठिकाना।।३०

रुदन करत जब आपा खोई।
तब विश्वास दिया मुनि कोई।।३१

करे विलापा तले अशोका।
तू हर ले मेरे सब शोका।।३२

करि परिकम्मा आगे आई।
झाड़ गुफा पशु दिये दिखाई।।३३

चेदि नरेश नगर में आई।
राज महल दासी कहलाई।।३४

समय पाय मौसी पहिचानी।
गले लगा के मन पछितानी।।३५

सादर कुंडलपुर पहुंचाई।।
समय देख नल खोज कराई।।३६

झूठ स्वयंबर फिर रचवाया।
राजा ऋतुपर्णा बुलवाया।।३७

राज सारथी नल बन आये।
रूप बदल दम कंठ लगाये।।३८

फिर पुष्कर को आन हराया।
राज पाठ फिर नल ने पाया।।३९

जो यह कथा सुने मन लाई।
पावे धीरज पाप मिटाई।।४०

नल दमयंती की कथा, वेद पुराणहि गान।
संयम नियमों से चले, कहत है कवि मसान।।

परिचय :- आगर मालवा के शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय आगर के व्याख्याता डॉ. दशरथ मसानिया साहित्य के क्षेत्र में अनेक उपलब्धियां दर्ज हैं। २० से अधिक पुस्तके, ५० से अधिक नवाचार है। इन्हीं उपलब्धियों के आधार पर उन्हें मध्यप्रदेश शासन तथा देश के कई राज्यों ने पुरस्कृत भी किया है। डॉं. मसानिया विगत १० वर्षों से हिंदी गायन की विशेष विधा जो दोहा चौपाई पर आधारित है, चालीसा लेखन में लगे हैं। इन चालिसाओं को अध्ययन की सुविधा के लिए शैक्षणिक, धार्मिक महापुरुष, महिला सशक्तिकरण आदि भागों में बांटा जा सकता है। उन्होंने अपने १० वर्ष की यात्रा में शानदार ५० से अधिक चालीसा लिखकर एक रिकॉर्ड बनाया है। इनका प्रथम अंग्रेजी चालीसा दीपावली के दिन सन २०१० में प्रकाशित हुआ तथा ५० वां चालीसा रक्षाबंधन के दिन ३ अगस्त २०२० को सूर्यकांत निराला चालीसा प्रकाशित हुआ।
रक्षाबंधन के मंगल पर्व पर डॉ दशरथ मसानिया के पूरे ५० चालीसा पूर्ण हो चुके हैं इन चालीसाओं का उद्देश्य धर्म, शिक्षा, नवाचार तथा समाज में लोकाचार को पैदा करना है आशा है आप सभी जन संचार के माध्यम से देश की नई पीढ़ी को दिशा प्रदान करेंगे।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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