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मुझे अफसौस रहेगा

गगन खरे क्षितिज
कोदरिया मंहू (मध्य प्रदेश)
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वक़्त कभी रूकता नहीं,
समय के चक्र को खुद
आदमी ने अवरूद्ध कर दिया
साथ ही मौत का जिम्मेदार हैं,
मौत के सौदागर बन गये
हवाओं में ज़हर नहीं घुला,
पत्थरों के जंगल आज की समस्या है,
वन उपवन, जल-थल उजाड़कर
अब आंसू बहा रहा है।

फिर उसने आकर कहा मौत हूं मैं
पहचाना हमदम हूं तेरी,
तेरी जिज्ञासा को जानकर
आई हूं करीब तेरे आदमी
आदमी का दुश्मन है,
ज़िन्दगी का उसके लिए कोई
मायने नहीं वहां ईश्वर को
झुठलाने लगा है,
उसकी बनाई सृष्टि को
अणु परमाणु हथियारों से
तबाही मचाने वाला है।
अगर समय रहते नहीं जागा
तो महाप्रलय आयेगा
सब नष्ट हो जायेगा।
मौत हमेशा समय के चक्र
साथ होगी परन्तु जिन्दगी नहीं
फिर कई युगों तक मुझे जिंदगी के
आने का इंतजार रहेगा
मुझे कभी दोष न देना
मुझे दुःख है पत्थर दिल नहीं गगन
इंसानौं की तबाही याद रहेगी
हम दर्द साथी में आंसू बहाती रहूंगी
यही मुझे अफसौस रहेगा।

परिचय :- गगन खरे क्षितिज
निवासी : कोदरिया मंहू इन्दौर मध्य प्रदेश
उम्र : ६६वर्ष
शिक्षा : हायर सेकंडरी मध्य प्रदेश आर्ट से
सम्प्रति : नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण भोपाल मध्यप्रदेश सेवानिवृत्त २०१४
साहित्य में कदम : २०१४ से भारतीय साहित्य परिषद मंहू, मध्य प्रदेश लेखक संघ मंहू इकाई, महफ़िल ए साहित्य कोदरिया मंहू, आर्चना साहित्य संस्थान मंहू, राष्ट्रीय संखी साहित्य परिवार, छत्तीसगढ़ सखी साहित्य परिवार, म. प्र. संखी साहित्य परिवार, राष्ट्रिय हिंदी रक्षक मंच आदि समूह से समय पर जुड़े है।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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