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तेरे झूठे मन से

अर्चना लवानिया
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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तुझसे तेरे झूठे मन से
मैंने कर ली कुट्टी
मैं नहीं बोलती।

जब देखो तब मुझे सताए
बात बात में रूठ जाए
मुझसे हर एक राज छुपाए
मैं मन का हर भेद खोलती,
नहीं बोलती।

गली मोहल्ले नाच नचाए
आमराई में मुझे बुलाए
कान्हा बनकर बंसी की
हर ताल ताल पर मुझे नचाए
कह दो इस गांव की राधा
ऐसे वैसे नहीं डोलती,
नहीं बोलती।

खींचकर प्यार की लक्ष्मण रेखा
वह अपने अधिकार जताए
छू ले मेरी कंघी टिकुली
आंखों से दर्पण दिखलाएं
मेरी क्वारी नजरें
शर्म से झुकती टटोलती,
नहीं बोलती।

कसमें वादों की नींव पर
सपनों का इंद्रधनुषी
महल बनाए
रहेगा प्यार कयामत तक
हर पल एहसास कराएं
खुशी-खुशी मैं प्रीत के आंगन
दिन दोपहरी रात डोलती,
नहीं बोलती।

उसकी कसमें टूट गई
टूट गए कितने वादे
लादे फिरते हैं फिर भी
जर्जर आस को साधे
मैं हूं उससे रूठी रूठी
वह आए यह ख्वाहिश बांधे
यादों की पुरवाई देती दस्तक
जाओ संकल नहीं खोलती,
नहीं बोलती।

तुझसे तेरे झूठे मन से
मैंने कर ली कुट्टी,
मैं नहीं बोलती।

परिचय :– अर्चना लवानिया
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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